मोदी का अंडर करंट चला तो गुना छोड़कर तीनों सीट पर खिलेगा कमल
-कांग्रेस-भाजपा ने अपने पक्ष में बताया बढ़ा हुआ मतदान
ग्वालियर,13 मई (हि.स.) विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ताच्युत का सबसे बड़ा कारण रहे ग्वालियर-चंबल संभाग में रविवार को सबसे बड़ी पंचायत के लिए डाले गए वोटों का आंकड़ा सभी विस क्षेत्रों में बढ़ गया है। यह वर्ष 2014 के लोस चुनाव की तुलना में यह 7 से 12 फीसदी तक बढ़ा है। इसके पीछे कारण चाहे पिछले पांच साल की मोदी सरकार की उपलब्धियां रही हों या पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक से बढ़े सेना और देश के मनोबल का रहा हो या फिर स्थानीय कारण रहे हों, लेकिन इतना तो तय है कि इनसे मतदाता पोलिंग बूथ पर जाने के लिए मजबूर हुआ है।
बहरहाल ग्वालियर-चंबल संभाग की चारों सीट पर उम्मीदवार और उनकी पार्टी के रणनीतिकार अपने हिसाब से बढे़ हुए मतदान को अपने-अपने पक्ष में बता रहे हैं। खैर 11 दिन के इंतजार के बाद 23 मई को सारी अटकलें और कयासबाजी साफ हो जाएगी। यह बात अलग है कि इन 11 दिनों में उम्मीदवारों की सांस ऊपर और नीचे होती रहेंगी। क्योंकि 12 मई को मतदान के बाद बूथ से लौटे पोलिंग एजेंट की रिपोर्ट पर अभी किसी को शत-प्रतिशत भरोसा नहीं हो रहा है। कांग्रेस के लोग कहने लगे हैं कि बढ़ा हुआ वोट कहीं मोदी का अंडर करंट तो नहीं तो दूसरी और भाजपा के लोग दबी जुबान कह रहे हैं कि यह वोट दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नतीजा भी हो सकता है। बढ़े हुए मतदान प्रतिशत को हम इस रूप में देखने का प्रयास करते हैं कि वर्ष 2014 में मुरैना लोकसभा क्षेत्र में 50.24 फीसद वोट पड़े थे और इस बार यही मतप्रतिशत बढ़कर 62.12 हो गया। यानि इस बार 11.98 फीसद मतदाताओं ने कहीं ज्यादा मताधिकार का उपयोग किया।
मुरैना से हजारों युवा सेना और अर्द्धसेना में भर्ती होते हैं। सेना के सर्वोच्च बलिदान और राष्ट्रीय स्वाभिमान की बात अगर चली है तो बढ़े हुए मतदान को मोदी का अंडर करंट कहने में कोई गुरेज नहीं है। लेकिन मुरैना में श्योपुर और विजयपुर, सबलगढ़ यह तीन विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस उम्मीदवार के लिए अच्छी संभावनाएं बता रहे हैं तो अंबाह, दिमनी और मुरैना से भाजपा उम्मीदवार केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की उजली तस्वीर दिख रही है। श्योपुर के वरिष्ठ पत्रकार अनिल शर्मा मुरैना सीट पर भाजपा की जीत देख रहे हैं।
ग्वालियर में बढ़े मतदान से बढ़ी धड़कनेंं : ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2014 की तुलना में करीब 7 फीसद मतदान बढ़ गया है। कई लोग इसे निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं के बीच सक्रियता मान रहे हैं तो कई लोग कांग्रेस उम्मीदवार अशोक सिंह के प्रति सहानुभूति तो बहुत से लोग ऐसे भी जो मतदाताओं के दिमाग में चल रहे अंडर करंट से इंकार नहीं कर पा रहे। यहां पांच साल पहले 52.73 और इस बार 59.60 फीसद मतदान हुआ है। लेकिन गौर करने वाली बात है कि शहरी मतदाताओं में मतदान का रुझान कम दिखा जबकि ग्रामीण क्षेत्र में कहीं अधिक मतदान होना सबके गणित बिगाड़ रहा है ।
भाजपा उम्मीदवार विवेक नारायण शेजवलकर के समर्थक अभी से ही अपनी जीत मानकर चल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक प्रो.योगेन्द्र मिश्रा कहते हैं कि अगर 7 फीसदी बढ़ा हुआ वोट अंडर करंट से आया है तो ग्वालियर का फैसला काफी नजदीकी अंतर से होने वाला है।
भिंड में फंस गई फांस : भाजपा के नजरिए से सबसे आसान समझी जा रही सीट भिंड-दतिया लोकसभा क्षेत्र में मतदान के बाद खबरें चुनाव फंसने की बातें आ रही है । 2014 में यह 45.63 प्रतिशत था जो इस बार 54.57 फीसद मतदान रहा। 9.94 फीसद बढ़ा हुआ मतदान क्या यही इशारा कर रहा है। इसे समझने में सबका दिमाग चकरा रहा है। हालांकि भिंड में भाजपा अपनी जीत को लेकर आशान्वित है। अटेर विधायक अरविंद सिंह भदौरिया भी कहते हैं कि चुनाव हम जीत रहे हैं। पत्रकार गणेश भारद्वाज भिंड में भाजपा की जीत देख रहे हैं।
अंचल की रही आखिरी सीट गुना-शिवपुरी का सवाल है तो वहां कोई भी करंट बेमानी है। मोदी की आंधी के बाद भी यहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव जीते थे । ज्योतिरादित्य की धर्मपत्नी प्रियदर्शनी राजे अपनी जीत छह लाख से होना बता रही हैं। सबसे बड़ी बात भाजपा ने जिस केपी यादव को मैदान में उतारा है, वह कितना खरा सोना है, यह 23 मई की तारीख बताएगी।