मुख्यमंत्री पद छोड़ देने के बाद आम आदमी के बराबर हो जाता है : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, 07 मई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने आज यूपी सरकार को झटका देते हुए कहा है कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगले में रहने के हकदार नहीं हैं। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि एक बार मुख्यमंत्री अपना पद छोड़ दे तो वह आम आदमी के बराबर है। यूपी सरकार ने कानून में संशोधन कर जो नई व्यवस्था दी थी वो असंवैधानिक है। कोर्ट ने आज एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए यूपी मिनिस्टर सैलरी अलाउंस एंड मिसलेनियस प्रोविजन एक्ट के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया है जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले में रहने का अधिकार दिया गया था। पिछले 19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछले 16 जनवरी को यूपी सरकार ने अपनी लिखित दलीलें कोर्ट के समक्ष दायर की थी। पिछले 4 जनवरी को गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि उत्तरप्रदेश के इस कानून को निरस्त किया जाना चाहिए। ये कानून संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करता है और ये मनमाना है। उसके पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि ये लोक महत्व का मामला है । लोकप्रहरी ने याचिका दायर कर मांग की थी कि कानून के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को एक ही आवास मिलना चाहिए । याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उक्त कानून में संशोधन करते हुए यह आवंटन इसलिए भी किया गया है ताकि मुख्यमंत्री के कार्यमुक्त होने के बाद भी बंगला उनके पास बना रहे। यूपी सरकार का तर्क था कि 1985 से ही प्रदेश में मुख्यमंत्री को दो बंगले आवंटित किए जाने की प्रथा चली आ रही है।