भारतीय सेना में महिलाओं के लिए खुलते द्वार
भारतीय सेना में महिलाओं की भागीदारी, सेना में उनकी बहुत कम संख्या और महत्वपूर्ण ऑपरेशंस में उनकी नगण्य भूमिका को लेकर लंबे समय से बहस चलती रही है। हाल ही में सरकार ने ‘महिला सैनिक भर्ती’ के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की शुरूआत करके सेना में बतौर सैनिक कैरियर बनाने की इच्छुक महिलाओं के लिए द्वार खोल दिए हैं। वैसे तो शुरूआती चरण में सिर्फ 100 पदों के लिए ही भर्ती की जा रही है। लेकिन सेनाध्यक्ष बिपिन रावत का कहना है कि सेना में जवानों के रूप में महिलाओं की श्रेणीबद्ध तरीके से भर्ती की जाएगी। उनकी भूमिका अपराध के मामलों की जांच करने से लेकर सेना के संचालन में सहायता करने तक होगी। जवानों के रूप में सेना में भर्ती की शुरूआत करने के साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि भारतीय सेना में अब महिलाओं की संख्या 20 फीसदी होगी। सेना पुलिस में शामिल होने वाली महिलाएं सेना की मदद के साथ ही दुष्कर्म, छेड़छाड़ जैसे मामलों की जांच करेंगी। सेना पुलिस की भूमिका सैन्य क्षेत्रों के भीतर पुलिस कार्य की होती है। इन जवानों को सैनिक की भांति प्रशिक्षण तो दिया जाता है, मगर इन्हें युद्ध क्षेत्र में नहीं भेजा जाता।
कहने को तो 1990 के दशक में महिलाओं ने सेना में जाना शुरू किया था। लेकिन करीब तीन दशक बाद भी अगर सेना में उनकी संख्या देखें तो हैरानी होती है। फिलहाल 14 लाख सशस्त्र बलों के 65 हजार अधिकारियों की फौज में वायुसेना में 1610, थल सेना में 1561 तथा नौसेना में 489 महिलाएं ही हैं। दरअसल अभी तक सेना में महिलाओं को सिर्फ अधिकारियों के रूप में ही शामिल किया जाता रहा है। उनकी भर्ती सेना में चिकित्सा, कानूनी, शैक्षिक, सिग्नल, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में ही होती रही है। उनकी जिम्मेदारी सैनिकों द्वारा नियमों और विनियमों के उल्लंघन को रोकना, सैनिकों के साथ शांति और युद्ध के दौरान रसद को बनाए रखना, युद्धबंदियों को संभालना और आम पुलिस को सहायता प्रदान करना इत्यादि रही है। शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत चुनी जाने वाली महिला अधिकारी सेना में 14-15 साल तक ही अपनी सेवाएं दे पाती हैं। ऐसी महिला अधिकारियों की संख्या लगभग नगण्य रही है, जो स्थायी कमीशन में जगह बना पाती हैं। गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के सम्बोधन में कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सशस्त्र बलों में भर्ती होने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन लेने का विकल्प दिया जाएगा। उसके बाद से उम्मीद की जा रही है कि स्थायी कमीशन में महिला अधिकारियों की संख्या बढ़ेगी।
जहां तक युद्ध ऑपरेशनों की बात है तो दुनिया के कई समृद्ध देशों में युद्ध ऑपरेशनों में भी महिलाओं की अच्छी खासी भागीदारी रहती है। अमेरिका में तो न्यूक्लियर मिसाइल सबमरींस पर भी महिलाओं की नियुक्ति होती है। मलेशिया, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे देश वॉरशिप में अपनी महिला सैनिकों को भी भेजते हैं, किन्तु हमारे यहां युद्ध ऑपरेशनों से महिलाओं को दूर रखा जाता रहा है। हमारी वायुसेना की महिला अधिकरियों को हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाने की ही अनुमति है। प्रायोगिक तौर पर उन्हें फाइटर जेट उड़ाने की भी अनुमति मिली है। वायुसेना में इस समय करीब 100 महिला पायलट हैं किन्तु युद्ध क्षेत्र, सबमरीन और संकटग्रस्ट क्षेत्रों में उनकी नियुक्ति का अभी तक कोई प्रावधान नहीं है।
विदेशी सेनाओं के मुकाबले भारतीय सेना में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो हम बहुत पीछे हैं। हालांकि अब सेना में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 फीसदी करने का निर्णय लिया गया है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए। विदेशी सेनाओं में महिलाओं की संख्या पर नजर डालें तो चीनी सेना में करीब ढाई लाख महिला सैनिक हैं, जिनमें से डेढ़ लाख आर्म्ड फोर्सेज का हिस्सा हैं। अमेरिका में तो वर्ष 1775 से ही महिलाएं सेना में शामिल होती रही हैं। फिलहाल वहां की सेना में करीब दो लाख महिला सैनिक हैं। यही नहीं, करीब चार साल पहले वहां सेना में महिलाओं को कॉम्बैट ऑपरेशनों में शामिल होने की अनुमति भी मिल गई। फ्रांस में भी वर्ष 1800 से ही महिलाएं सेना में शामिल हैं। इजराइल की महिला सैनिक तो दुनिया की सर्वाधिक खतरनाक महिला सैनिक मानी जाती हैं। वहां सेना में पुरूष और महिला सैनिकों की संख्या लगभग बराबर है। रूसी सेना में भी करीब दो लाख महिला सैनिक हैं। इन देशों के अलावा ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, यूनान, यूक्रेन, चेक गणराज्य, पोलैंड, पाकिस्तान, रोमानिया इत्यादि में भी महिलाएं सेना का हिस्सा बनकर लड़ाकू तथा प्रशासनिक दोनों प्रकार की भूमिकाएं बखूबी निभा रही हैं।
भारतीय सेना में महिलाओं की संख्या बेहद सीमित रहने और बतौर सैनिक तैनाती न किए जाने को लेकर हमारी पुरूष मानसिकता काफी हद तक जिम्मेदार रही है। थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत का यह बयान कि ‘भारतीय सेना के अधिकांश जवान गांवों से आते हैं। वे महिला अधिकारियों का नेतृत्व स्वीकार करने को अभी तैयार नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर किसी युद्ध क्षेत्र में महिला को कमांड दी गई और उस दौरान यदि वे मातृत्व अवकाश मांगती हैं, तो क्या होगा? अगर महिला कमांडर के नेतृत्व में एक टुकड़ी लंबे ट्रैक पर जा रही है तो महिला अफसर के सोने का अलग से बंदोबस्त करना होगा। उनके कपड़े बदलने के लिए किसी जगह को घेरकर तैयार करना होगा’, बेहद पिलपिला लगता है।
इस प्रकार की मानसिकता के दायरे में भारतीय सेना को बांधते समय हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारा इतिहास महिला वीरांगनाओं के युद्ध कौशल से भरा पड़ा था। क्रूर मुगल शासकों तथा अंग्रेजों के समय में अनेक महिला वीरांगनाओं ने अपने कारनामे इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित करा दिए। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चित्तूर की रानी चेनम्मा, चांद बीबी, गोंड की रानी दुर्गावती, झलकारी बाई, उदादेवी पासी आदि कई ऐसी ही महिला वीर योद्धाओं ने इसी अनुपम धरा पर जन्म लेकर युद्ध के मोर्चे पर वीरता की सुनहरी इबारतें लिखी हैं। सवाल यह है कि थलसेना, नौसेना और वायुसेना के जवान यदि मौजूदा समय में महिला अधिकारियों का नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं, तो ऐसी दलीलें देने का क्या औचित्य है कि युद्धक भूमिकाओं में जवान महिला अधिकारियों का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे?
एक सवाल यह भी उठाया जाता रहा है कि अगर युद्ध के दौरान महिला सैनिक दुश्मन सेना की गिरफ्त में आ जाएं तो उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार हो सकता है। युद्धबंदियों के संरक्षण के लिए विएना कनवेंशन तथा कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय कानून अस्तित्व में हैं। इस तरह के सवालों या दलीलों के बीच अगर हम देखें तो दूसरे देशों की सेनाओं में महिला सैनिकों का पर्याप्त संख्या बल है। अमेरिका तो अपनी महिला सैनिकों को युद्ध के मोर्चे पर भी भेजता है। वे शहीद भी होती हैं और कभी-कभार युद्धबंदी भी बनाई जाती हैं, किन्तु इसे लेकर वहां कभी इस प्रकार की मानसिकता या दलीलें देखने-सुनने को नहीं मिली। दरअसल, हमें महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में बड़ा बदलाव लाने की जरूरत है। भारत को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में विकसित करने के लिए हमें महिलाओं के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना ही होगा।
महिलाओं को लेकर यह तर्क भी दिया जाता है कि लड़ाकू भूमिकाओं में भर्ती के लिए महिलाएं सेना में अनिवार्य कठोर शर्तों को स्वीकार नहीं कर पाएंगी, क्योंकि महिलाओं के लिए वही मानक होंगे, जो लड़ाकू भूमिकाओं के लिए किसी आम सैनिक से अपेक्षित होते हैं। ऐसे तर्क देते समय हम यह भूल जाते हैं कि भारतीय वायुसेना में महिलाएं फाइटर पायलट बन चुकी हैं। सीमा सुरक्षा बल का महिला दस्ता पूरी जांबाजी के साथ देश की सीमाओं की चौकसी कर रहा है। आज अगर महिलाएं फाइटर प्लेन से मिसाइलें गिरा सकती हैं तो उनमें बंदूकें, तोपें और टैंक चलाने का भी पूरा सामर्थ्य है। जरूरत देश की बहादुर बेटियों को सेना के द्वार खोलकर उचित अवसर प्रदान करने की है। यदि देश की बेटियां सेना में भर्ती होने के तमाम जोखिमों और परेशानियों को जानते-समझते हुए इसका हिस्सा बनकर देश सेवा का जज्बा रखती हैं तो उन्हें इसका अवसर मिलना ही चाहिए।