भाजपा से अधिक सीटें लेने के लिए नीतीश कर रहे कई तरह के उपक्रम
नई दिल्ली, 25 सितम्बर(हि.स.)। जदयू सुप्रीमो व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वर्तमान केन्द्र सरकार से संबंधों को लेकर भीतर से सहज नहीं लगते| लेकिन पार्टी के अंदर बाहरी दबाव में आगामी चुनावों में अधिक सीटें लेने के लिए कई तरह के उपक्रम कर रहे हैं। बिहार में विकास की बहार लाने के वर्तमान केन्द्र सरकार व उसके सर्वेसर्वा के आश्वासन व वादे के बाद उन्होंने राजद व कांग्रेस को झटका दे, भाजपा से गठबंधन कर लिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल को बताया भी नहीं जिन्होंने लालू पर दबाव बनाकर नीतीश को मुख्यमंत्री स्वीकार करने के लिए राजी किया था। सूत्रों का कहना है कि अब वही नीतीश कुमार आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा द्वारा जदयू को सीटें कम देने के संकेत व दबाव से चिंतित हो गये हैं। जदयू के नेताओं को लगता है कि भाजपा यह करके उनको कमजोर करना चाहती है, ताकि अगले विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री बनवा सके। सूत्रों के अनुसार राज्य भाजपा का बहुमत इस पक्ष में है कि नीतीश को केन्द्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय देकर राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री बना दिया जाना चाहिए और यह 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कर देना चाहिए। राज्य भाजपा में अब यह कहा जाने लगा है कि बिहार में कब तक दूसरी पार्टी के मुख्यमंत्री को सिर पर ढोते रहेंगे। जब तक भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं होगा तब तक राज्य में पार्टी अपने बदौलत पूर्ण बहुमत में नहीं आएगी।
इस बारे में जदयू के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि कोई भी बड़ा नेता या तो सीएम बनना चाहता है या पीएम बनना चाहता है। सीएम राज्य का राजा होता है और पीएम देश का। केन्द्र में मंत्री बनना कोई मायने नहीं रखता है। वह मात्र एक मंत्रालय का मंत्री होता है। फिर वाजपेयी की सरकार वाली बात भी नहीं है जिसमें केन्द्रीय मंत्री को अपने काम के लिए पूरी छूट मिली हुई थी। अब तो केन्द्रीय मंत्री का कोई मतलब नहीं है। सब निराकार मंत्री हैं। न तो उनके पसंद का सचिव होता है न ही अन्य पदाधिकारी। सब कुछ ऊपर से कंट्रोल हो रहा है। इसलिए नीतीश कुमार को केन्द्र में जाने से उनको और जदयू दोनों को ही नुकसान होगा। कहा जाता है कि इस सबके चलते बिहार में विकास का बहार लाने के वादे के साथ कमल का फूल थामे नीतीश बहुत सहज नहीं हैं। उन्होंने अपने एक नये नवेले सर्वेयर के मार्फत लालू के लोगों से बात किया, लेकिन लालू के छोटे पुत्र ने साफ कह दिया कि गच्चा दे के गये थे, अब वापस गले लगना चाहते हैं तो गद्दी राजद को दें। इधर से इस जवाब के बाद सर्वेयर साहब कांग्रेस के उस सर्वेसर्वा के पास गये जिन्होंने लालू प्रसाद पर दबाव बनाकर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनवाया था। सूत्रों का कहना है कि बिहारी सुशासन बाबू की सियासी दगाबाजी से कांग्रेस के सर्वेसर्वा आहत हैं। सो वहां से दो टूक जवाब मिला कि उनका स्वागत है लेकिन उन्हें अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय करना पड़ेगा। लेकिन नीतीश इसके लिए क्यों तैयार होंगे। अभी तो वह पावरफुल हैं। उनकी इतनी भी मजबूरी नहीं है कि कांग्रेस व राजद के शरण में जायें। इसके अलावा वह गुजरात में शंकर सिंह वाघेला का हाल देख रहे हैं। फिर भी अन्दर -अन्दर गुफ्तगू चल रही है, क्योंकि राजनीति में कब दुश्मन दोस्त हो जाए कहा नहीं जा सकता।
इस पर पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। आप केन्द्र सरकार में देखिए, बहुत से लोग जो मोदी का नाम लेकर क्या-क्या कहे थे और भाजपा से गठबंधन तोड़कर अलग हो गए थे| वे आज उन्हीं की केन्द्र सरकार में मंत्री हैं। नीतीश ने भी क्या-क्या कहा था और अब कैसे साथ हैं। मोदी ने भी उनके बारे में क्या -क्या कहा था, सबको पता है। इसलिए कौन कब किसके साथ गठबंधन कर लेगा, कब छटक जाएगा, किसको अपने फायदे के लिए उपयोग करने के बाद छोड़ देगा, भगवान भी नहीं जानता। यह भी हो सकता है कि भाजपा पर दबाव बनाने के लिए नीतीश ऐसा कर रहे हों।