भदोही में 37 साल तक साथ रहा कांग्रेस का हाथ, फिर 89 से टूटा जनविश्वास
भदोही, 16 अप्रैल (हि.स.)। महर्षि वाल्मीकी की तपोस्थली और गंगा के सपाट मैदानी इलाके में स्थित पूर्वांचल का भदोही जिला कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन आज की स्थिति में यहां कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं बचा है। संगठन के हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि पार्टी को आजमगढ़ से उम्मीदवार लाना पड़ा। यहां 1952 से लेकर 1984 तक कांग्रेस की तूती बोलती थी। तकरीबन 37 साल तक मिर्जापुर-भदोही में जनता का ‘हाथ’ कांग्रेस के साथ रहा लेकिन बाद में जनविश्वास ऐसा टूटा कि मंडल और कमंडल की राजनीति कांग्रेस को ले डूबी। अब फिर वापसी कब होगी, यह कहना मुश्किल है।
भदोही पहले मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था। तब यहां दो-दो उम्मीदवार चुनाव लड़ते थे। भदोही से अलग और मिर्जापुर से दूसरा उम्मीदवार होता था। दलों की संख्या नगण्य थी। स्वाधीनता के बाद सिर्फ कांग्रेस इकलौता दल था। आज की भाजपा तब की जनसंघ उस स्थिति में नहीं थी कि वह कांग्रेस से मुकाबला कर पाए। स्वाधीन भारत के पहले लोकतांत्रिक चुनाव में मिर्जापुर-भदोही से 1952 में आरके नारायण और जेएन विल्सन चुने गए। 1957 में भी दोबारा यही लोग चुने गए। 1962 में पंडित श्यामधर मिश्र को विजय मिली। 1967 में बंश नारायण सिंह को कमान मिली। 1971 में कांग्रेस अल्पसंख्यक राजनीति की तरफ मुड़ गयी और यहां से अजीज इमाम को चुनाव मैदान में उतारा और वह विजयी भी हुए। इसके बाद इमरजेंसी काल में यहां से कांग्रेस की पराजय हुई और 1977 में जनता के दल के उम्मीदवार फकीर अली अंसारी ने चुनाव जीता।
इसके बाद कांग्रेस की खोई जमीन तब लौटी जब 1980 में अजीम इमाम कांग्रेस से सांसद चुने गए। 1981 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस से पंडित उमाकांत ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1984 में वह कांग्रेस के अंतिम सांसद साबित हुए। इसके बाद 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन और आरक्षण की आग में कांग्रेस पीछे टूट गयी और जातिवाद का फसलें उग आईं। नये क्षेत्रीय दलों का विकास होने से कांग्रेस फिर दोबारा सत्ता में नहीं लौटी। यूपी में उसके अंतिम मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह रहे।
कांग्रेस मंडल-कमंडल की राजनीति के चक्रव्यूह में फंसती चली गयी और उसका संगठन बिखर गया। कांग्रेस का मूल वोटर ब्राह्मण और दलित भाजपा और बसपा में विभाजित हो गया। 1990 में जातिवादी राजनीति का उदय हुआ। सपा-बसपा और भाजपा जैसे दल अस्तित्व में आए। आज स्थिति यह है कि कांग्रेस के पास संगठन तक नहीं है। भदोही में कभी पंडित श्यामधर मिश्र की सियासत का जलवा था लेकिन आज पार्टी को रमाकांत यादव से जैसे बाहुबली को आजमगढ़ से आयातित करना पड़ा है।
हाल ही में प्रियंका गांधी ने गंगा नदी के जरिए वोट यात्रा करके कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं में आक्सीजन भरने का काम किया है। भदोही के धार्मिक स्थल सीतामढ़ी में उन्होंने रात्रि विश्राम भी किया था। चुनावों में उनकी मांग भी है लेकिन जातिवादी राजनीति में हाशिए पर पहुंची कांग्रेस के साथ एक बार फिर जनविश्वास लौट पाएगा, फिलहाल अभी यह कहना मुश्किल है।
भदोई सीट पर रमाकांत यादव जैसे उम्मीदवार को लाकर कांग्रेस मुकाबला त्रिकोणीय बना सकती है लेकिन रमाकांत यादव के एक बयान से ब्राह्मण नाराज हैं। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि यहां ब्राह्मण के चार-छह घर हैं वह चुनाव क्या लड़ेंगे जबकि जमीनी हकीकत यह है कि भदोही में सबसे अधिक ब्राह्मण हैं। अब देखना है कि चुनावी महासमर के संग्राम में कांग्रेस अपने को कैसे स्थापित करती है।