भदोही में कांग्रेस ने खोई जमीन हथियाने को बाहुबली संग जाति पर लगाया दांव

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भदोही, 14 अप्रैल (हि.स.)। कांग्रेस ने भदोही लोकसभा सीट से पूर्वांचल के बाहुबली नेता रमाकांत यादव को चुनावी मैदान में उतार कर यहां 35 साल से खोई राजनीतिक जमीन हथियाने के लिए नयी चाल चली है। पूर्वांचल में मोदी मैजिक के बाद आक्सीजन पर चल रही कांग्रेस इस करिश्मे से क्या गुल खिलाएगी यह तो वक्त बताएगा लेकिन रमाकांत को उतार कर कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन को मुश्किल में डाल सकती है।
भदोही को 2009 में आजाद संसदीय क्षेत्र बनाया गया जबकि इसके पूर्व यह मिर्जापुर-भदोही का हिस्सा था। 1984 के बाद कांग्रेस यहां हाशिये पर है। मिर्जापुर-भदोही संसदीय क्षेत्र से पंडित उमाकांत मिश्र यहां के अंतिम कांग्रेसी सांसद थे। 90 के दशक में मंडल और कमंडल की राजनीति ने कांग्रेस को हाशिये पर खड़ा कर दिया। उसी जमीन को हथियाने के लिए कांग्रेस ने आजमगढ़ के बाहुबली रमाकांत यादव को चुनावी जंग में उतारा है। वह यादव और पिछड़े वोटरों को कितना लुभा पाते हैं, यह तो वक्त बताएगा क्योंकि इनकी छवि दलबदलू की रही है। दूसरी बात भदोही में उन पर बाहरी का ठप्पा भी लग सकता है। कांग्रेस के इस नए दांव से सपा-बसपा के संयुक्त गठबंधन से घोषित उम्मीदवार पंडित रंगनाथ मिश्र की मुश्किल बढ़ा सकती है।
पूर्वांचल के बाहुबलियों में रमाकांत और उनके भाई उमाकांत की अलग पहचान रही है। सत्ता के बेहद करीब रहने वाले रमाकांत जहां से चले थे, एक बार पुनः उसी घर में लौट आए हैं। उन्होंने छठवीं बार पार्टी बदली है। रमाकांत आजमगढ़ की फूलपुर विधानसभा से चार बार विधायक और सासंद रह चुके हैं। 1984 में कांग्रेस के टिकट पर वह पहली बार विधायक बने थे।वह कांग्रेस, सपा, बसपा, भाजपा से होते हुए पुनः कांग्रेस में पहुंच गए हैं। 2008 में वह भाजपा में शामिल हुए और 2009 में आजमगढ़ में भाजपा का खाता खोला। 2009 में उन्होंने यादवों के बल पर ही आजमगढ़ में भाजपा का परचम लहराया था।
2014 में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के सामने उन्होंने चुनाव लड़ा और मुंह की खानी पड़ी। भाजपा ने इस बार उन्हें टिकट न देकर दिनेश लाल यादव यानी निरहुआ को अपना उम्मीदवार बनाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ को निशाने पर रखने से इस बार भाजपा से रमाकांत का पत्ता साफ हो गया जिसकी वजह से उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा। भदोही में अब डेढ़ लाख से अधिक यादवों को साधने में रमाकांत कितने कामयाब होते हैं, यह तो वक्त बताएगा लेकिन कांग्रेस की चाल से सपा-बपसा मुश्किल में पड़ सकती है। 


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