बापू की ‘वसीयत’ और कांग्रेस की सियासत

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आजादी के बाद गांधीजी (बापू) ने कहा था कि भारत की आजादी का लक्ष्य पूरा हो जाने के बाद राजनीतिक दल के रुप में कांग्रेस के बने रहने का अब कोई औचित्य नहीं है। अतएव इसे भंग करके लोक सेवक संघ बना देना चाहिए और कांग्रेस के नेताओं को सामाजिक कार्यों में जुट जाना चाहिए। गांधीजी ने अपनी हत्या के तीन दिन पहले यानी 27 जनवरी 1948 को एक नोट में लिखा था कि अपने वर्तमान स्वरूप में कांग्रेस अपनी भूमिका पूरी कर चुकी है। अतएव इसे भंग करके एक लोकसेवक संघ में तब्दील कर देना चाहिए। यह नोट एक लेख के रूप में 2 फरवरी 1948 को ‘महात्मा जी की अंतिम इच्छा और वसीयतनामा’ शीर्षक से ‘हरिजन’ में प्रकाशित हुआ था। यानि गांधीजी की हत्या के दो दिन बाद यह लेख उनके सहयोगियों द्वारा प्रकाशित कराया गया था। यह शीर्षक गांधीजी की हत्या से दुःखी उनके सहयोगियों ने दे दिया था। इसी तरह से उन्होंने कांग्रेस का संविधान और स्वरुप दोनों बदल डालने की बाबत स्वयं एक मसौदा 29 जनवरी की रात को तैयार किया था, जिसे उनकी हत्या के बाद कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव आचार्य युगल किशोर ने विभिन्न अखबारों को प्रकाशनार्थ जारी किया था। कांग्रेस के नाम गांधीजी की वसीयत कहा जाने वाला वह मसौदा इस प्रकार है- ‘भारत को सामाजिक, नैतिक व आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। भारत में लोकतंत्र के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय सैनिक सत्ता पर जनसत्ता के आधिपत्य के लिए संघर्ष होना अनिवार्य है। हमें कांग्रेस को राजनीतिक दलों और साम्प्रदायिक संस्थाओं की अस्वस्थ स्पर्धा से दूर रखना है। ऐसे ही कारणों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मौजूदा संस्था को भंग करने और नीचे लिखे नियमों के अनुसार ‘लोक सेवक संघ’ के रूप में उसे विकसित करने का निश्चय करती है।’
बताया जाता है कि गांधीजी अगले ही दिन यानि 30 जनवरी को अपनी प्रार्थना सभा में उस मसौदे पर सामूहिक चर्चा के साथ व्यक्तिगत रुप से कांग्रेस को भंग कर देने की घोषणा करने वाले थे, किन्तु दैव-दुर्योग से ऐसा कर नहीं सके।
उसी दिन उनकी हत्या हो गई और उसके बाद कांग्रेस भंग होने की बजाय सत्ता के रंग में रंगाती रही। बाद में सन 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया। गांधीवादी कांग्रेसियों के सिंडीकेट से अलग होकर नेहरुवादियों ने नेहरु की बेटी के नेतृत्व में ‘इन्दिरा कांग्रेस’ (कांग्रेस आई) बना लिया। कालान्तर बाद सिंडीकेट कांग्रेस काल-कवलित हो गई और सत्ता से चिपकी रही कांग्रेस-आई बदलते समय के साथ अघोषित रुप से सोनिया कांग्रेस में तब्दील होकर इन्दिरा वंश की पालकी बन गई। अर्थात भारत में लोकतंत्र की स्थापना का दम्भ भरने वाली कांग्रेस के भीतर का लोकतंत्र मर गया और पारिवारिक वंशतंत्र उसका प्राण बन गया। सन 2014 में हुए आम चुनाव के परिणामस्वरुप देश की केन्द्रीय सत्ता से बेदखल हो जाने और उसके बाद एक-एक कर कई राज्यों में भी सत्ता से दरकिनार हो जाने के पश्चात सिमटती गई यह कांग्रेस अब कायदे से विपक्ष कहलाने की अहर्ता से भी वंचित हो गई। पतन-पराभव की ओर तेजी से ढलती कांग्रेस को राजनीति की धुरी पर फिर से स्थापित करने की जद्दोजहद के बीच इसके नेतृत्व के द्वारा तरह-तरह के प्रयोग किये जाते रहे, किन्तु राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपने और फिर प्रियंका वाड्रा को महासचिव बनाने जैसे ये सारे टोटके पुरुषार्थविहीन प्रयोग ही सिद्ध हुए, क्योंकि पार्टी परिवारवाद व वंशवाद की जकड़न से मुक्त होने का साहस अब तक भी नहीं बटोर पायी। इन सब प्रयोगों के परिणाम आने बाकी थे कि इसी दौरान आम चुनाव ने उसे फिर घेर लिया। इस बार का आम चुनाव राष्ट्रीयता के उफान से भरा हुआ है, जिसमें अपने को टिकाये रखने के लिए कांग्रेस ने वोटों के लिए जिन-जिन ओटों का सहारा लिया है, वे सारे के सारे उत्थान की बजाय पतन के गर्त में ही धकेलने वाले सिद्ध हो रहे हैं।
भारत को टुकड़े-टुकड़े करने का नारा लगाने वाले गिरोहों के साथ युगलबंदी करने तथा भाजपा -मोदी विरोध के नाम पर भारत सरकार के विरुद्ध पाकिस्तान की वकालत करने लगने और अपने चुनावी घोषणा पत्र में देशद्रोह कानून को समाप्त कर देने का वादा करने के साथ मतदाताओं को रिश्वत की तर्ज पर सलाना बहत्तर हजार रुपये देने की पेशकश करने से कांग्रेस का बनावटी चरित्र भी विकृत होकर अराष्ट्रीय व अभारतीय हो चुका है। परिणामतः कांग्रेस के लोग ही कांग्रेस के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। उधर मतदाताओं को बहत्तर हजार रुपये देने की घोषणा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिश्वत की पेशकश मान उस पर संज्ञान लेते हुए पार्टी को जन प्रतिनिधित्व कानून के हनन का नोटिस जारी कर दिया है। इससे एक और संकट खड़ा हो सकता है।
यह उल्लेखनीय है कि भारत की सनातन संस्कृति व राष्ट्रीयता को अभिव्यक्त करने वाला हिन्दुत्व अब भारतीय राजनीति के केद्र में स्थापित हो चुका है तथा राष्ट्रवाद आज की राजनीति का मुख्य स्वर बन चुका है। ऐसे में इस वरेण्य सत्य की अनदेखी कर अवांछनीय चरित्र को वरण करना कांग्रेस के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। महात्मा गांधी ने कांग्रेस को भंग कर देने का प्रस्ताव जरूर प्रस्तुत किया था, किन्तु उसे लोकसेवक संघ बनाने का सुझाव भी दिया था जिसका उद्देश्य कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं को भारत राष्ट्र के नवोत्थान में संलग्न करना था, न कि राष्ट्र को खण्डित-विखण्डित करने का नारा लगाने वाले गिरोहों-समूहों की तरफदारी में प्रवृत करना। अतएव ऐसा कहा जा सकता है कि कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व सियासत के जिस मार्ग पर इसे ले जा रहा है, उससे जाने-अनजाने महात्माजी की इच्छा पूरी हो सकती है।
(लेखक साहित्यकार हैं।)


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