प्रधानमंत्री ओली और प्रचंड में ठनी, नेपाली राजनीति उठापटक के आसार

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काठमांडू, 10 फरवरी (हि.स.)। नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच दूरियां दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। दोनों के बीच मनमुटाव के मुख्य कारण उनकी इच्छाएं और कार्यशैली हैं।

प्रधानमंत्री ओली जहां संघीय सरकार में सत्ता का संकेंद्रण चाहते हैं, वहीं प्रचंड संविधान की मूल भावना के अनुरूप संघ और प्रांतों के बीच शक्ति पृथक्करण की प्रबल इच्छा रखते हैं। इसके अलावा भी कई मुद्दे हैं जैसे पार्टी के एकीकरण और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार हैं जिसे प्रधानमंत्री लटकाए हुए हैं। इसकी वजह से भी मतभेद गहराता जा रहा है।

दरअसल, प्रचंड संघवाद की वकालत इसलिए कर रहे हैं कि वह उन कैडराें का विश्वास जीतना चाहते हैं जिन्होंने संघर्ष के दौरान संघवाद के मुद्दे पर सीपीएन (माओवादी) का समर्थन किया था। इतना ही नहीं प्रचंड पुलिस विधेयक, नौकरशाही समायोजन विधेयक और शांति एवं सुरक्षा विधेयक के प्रावधानों से प्रसन्न नहीं हैं। उनका मानना है कि इन विधेयकों के कानून बनने पर प्रांतीय और स्थानीय सरकार की शक्तियां कम हो जाएंगी।

उल्लेखनीय है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में प्रचंड की इन चिंताओं को नजरंदाज कर दिया गया। इसके बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा और इन मुद्दों पर उन्होंने शनिवार को सार्वजनिक रूप अपनी पार्टी की सरकार की आलोचना कर दी।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों शीर्ष नेताओं के बीच दूरियां बढ़ाने में वेनेजुएला संकट का भी बड़ा योगदान है। पार्टी सचिवालय ने प्रधानमंत्री के नहीं चाहते हुए भी एक बयान जारी कर दिया। इस मुद्दे पर पार्टी के बड़े नेताओं की बैठक में ओली को इस मसले पर समर्थन नहीं मिला। उनका साथ केवल बिष्णु पौडेल और ईश्वर पोखरेल ने ही दिया, जबकि छह अन्य नेता, माधव कुमार नेपाल, झलनाथ खनाल, रामबहादुर थापा, बामदेव गौतम नारायण काजी श्रेष्ठ ने प्रचंड का समर्थन किया।

बात यहीं तक सीमित नहीं है। प्रचंड ने संसद में गतिरोध दूर करने के लिए नेपाली कांग्रेस के नेता शेरबहादुर देऊबा को भी मनाने का प्रयास किया, ताकि टीआरसी बिल को पारित कराया जा सके। जानकारी के मुताबिक प्रचंड और देऊबा संक्रमणकालीन न्यायिक मुद्दों का शीघ्र निपटारा चाहते हैं, जबकि प्रधानमंत्री ओली इसके लटकाए रखना चाहते हैं। हालांकि नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के नेता इस मसले पर बंटे हुए हैं।

हाल यह है कि प्रधानमंत्री ओली ने जब प्रचंड की ओर से उठाए गए चिंताओं पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने एकतरफा फैसला लेते हुए संविधानिक आयोगों के पांच अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी। सूत्रों का यह भी मानना है कि ओली पार्टी के अन्य नेताओं से विचार विमर्श किए बिना इन आयोगों के अध्यक्षों की नियुक्त की तैयारी कर रहे थे।

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री ओली बड़े मुद्दों पर स्वयं फैसला लेते हैं। वह पार्टी के अन्य नेताओं से सलाह मशविरा करने में विश्वास नहीं करते हैं। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल उनसे नाराज चल रहे हैं।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ओली ने प्रांत पांच के अपने चहेता मुख्यमंत्री शंकर पोखरेल और बिष्णु पौडेल को एकीकरण के मुद्दे को प्राथमिकता देने को कहा कहा था, लेकिन कार्य बल के समन्वयक की तीन पृष्ठ की रिपोर्ट में इसका उल्लेख तक नहीं था। नतीजा है कि इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया।

हालांकि ओली और प्रचंड के बीच गत शुक्रवार और शनिवार को भी मुलाकात हुई। दोनों नेताओं ने मुद्दों पर चर्चा भी की। लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। ओली ने प्रचंड से मुलाकात के दौरान कहा, “ मैं मिलकर काम करने को तैयार हूं, लेकिन आप सभी को मेरा समर्थन करना चाहिए। ”

कम्युनिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता ने तो यहां तक कहा कि ओली और प्रचंड में ऐसा ही संबंध है कि दोनों एक दूसरे को अपने-अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। दोनों के बीच कोई घनिष्ठता नहीं है, लेकिन मजबूरी में दोनों साथ हैं। दोनों नेता एक दूसरे की निंदा करने से परहेज नहीं करते हैं।


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