पूर्वांचल के आर्थिक-औद्योगिक विकास को राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित करने की मांग
नई दिल्ली (हि.स.)। मुंबई के भइया लोगों (उ.प्र., बिहार, झारखंड के लोग जो रोजी-रोटी के लिए मुंबई चले गये हैं) ने कुछ माह पहले “पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान” नामक संस्था बना कर अपनी जन्मभूमि के उत्थान के प्रयास शुरू किए हैं। इस संस्था ने पूर्वांचल की गरीबी ,बेरोजगारी ,अपसंस्कृति को समाप्त करने के लिए कई तरह से कोशिश शुरू की है। इसी क्रम में इसने देश के दो बड़े राजनीतिक दलों-भाजपा व कांग्रेस को पत्र लिखकर उनसे अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में पूर्वांचल के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों को राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित करने की मांग की है। उसने लिखा है कि पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड) देश का दिल है। यह देश की संस्कृति का भी केंद्र है। लेकिन सदियों से हमारा यह इलाका आर्थिक-औद्योगिक विकास की कमी से जूझ रहा है। सदियों से यहां रोजगार और काम-धंधे के अवसर कम हैं। सदियों से यहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रवास और पलायन के लिए मजबूर है। अंग्रेजों के राज में यहां के लोगों को गिरमिटिया बना दिया गया। उन्हें पानी के जहाज में लाद-लाद कर अंग्रेज अपने अन्य अधीन देशों में मजदूरी कराने के लिए ले गए। आज देश आजाद है फिर भी स्थिति क्या है। अभी हाल में उ.प्र. में चपरासी के 368 पद के लिए 23 लाख बेरोजगार युवकों ने आवेदन किया| उसमें से 255 पीएचडी किये हुए और 2 लाख से अधिक स्नातक हैं।
इस बारे में संस्था के सचिव ओम प्रकाश कहते हैं कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भाजपा की और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण कांग्रेस की चुनाव घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष हैं। उनसे हमारी मांग है कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए बनाये जा रहे उनके घोषणापत्र में पूर्वांचल के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों को राष्ट्रीय प्राथमिकता घोषित किया जाए और उसके लिए अपनाये जानेवाले तौर-तरीके और उपाय रेखांकित किये जाएं। साथ ही भोजपुरी मनोरंजन उद्योग (ऑर्केस्ट्रा, नाच, फिल्म और गीत-संगीत आदि) में इन दिनों अश्लीलता चरम पर है। इसका भाषा, साहित्य, संस्कृति, रहन-सहन, लैंगिक संवेदीकरण आदि पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। कई मामलों में तो औरतों का घरों से निकलना तक मुहाल हो रहा है। इस स्थिति पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है।