पहले जैसा नहीं है अन्ना के अनशन का असर

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नई दिल्ली, 30 जनवरी (हि.स.)। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने वाले 81 वर्षीय किसन बाबू राव हजारे उर्फ अन्ना हजारे ने महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर “भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास” के बैनर तले जन आंदोलन सत्याग्रह (भूख हड़ताल ) शुरू कर दिया। हालांकि उनके इस बार के सत्याग्रह से सरकार व जनता में कोई हलचल नहीं है।
अन्ना हजारे महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अपने गांव रालेगण सिद्धि में यादव बाबा मंदिर के पास भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी तीन मांगे हैं। पहला- केन्द्र में लोकपाल की नियुक्ति , दूसरा- हर राज्य में लोकायुक्त कानून, तीसरा – किसानों की मांगों पर तुरन्त निर्णय । महाराष्ट्र सरकार और अन्ना हजारे के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे मंत्री गिरीश महाजन ने अन्ना हजारे से उनकी सभी मांगें पूरी होने की बात कहते हुए भूख हड़ताल खत्म करने अपील की लेकिन अन्ना हजारे उनकी बातों में नहीं आये।
अन्ना हजारे के एक विश्वासपात्र का कहना है कि अन्ना द्वारा चलाये गये भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का सबसे अधिक लाभ जिस भाजपा को हुआ वही भाजपा अब अन्ना हजारे को दगा हुआ कारतूस मान कर उनको अनदेखा करने लगी है। भाजपा के जो भी नेता कहते हैं कि अन्ना की सभी मांगे मान ली गई हैं, वे बतायें कि केन्द्र में कब, किसको लोकपाल बनाया गया । किन-किन राज्यों में लोकायुक्त कानून लागू कर दिया गया । किसानों की कितनी मांगों को मान लिया गया। अन्ना ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बीते कई वर्षों में लगातार पत्र लिखे लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया।
इस बारे में महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार तानाजी कोलते का कहना है कि अन्ना हजारे ने यूपीए सरकार के समय 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार विरोधी जो बड़ी रैली की थी, उससे कांग्रेस व उसकी केन्द्र सरकार के विरुद्ध देश में जो माहौल बना, उसका लाभ 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा व नरेन्द्र मोदी को मिला। अन्ना के साथ मंच पर जो जनरल विजय कुमार सिंह व किरण बेदी दिखे थे, वे भी लाभ के पदों पर हैं। मोदी ने केन्द्र में लोकायुक्त नियुक्त किये बिना ही 4 साल 8 माह राज कर चुके हैं। अब तो अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव है । इस बीच तो कुछ होना नहीं है।
केन्द्र सरकार द्वारा अब तक लोकपाल नियुक्त नहीं किये जाने , इतने वर्ष से लटकाये रखने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर हुई है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से अब तक क्या किया? इसकी विस्तृत रिपोर्ट मांगी है । इसको लेकर अन्ना हजारे हर कुछ माह बाद अनशन पर बैठते रहे, प्रधानमंत्री को पत्र लिखते रहे लेकिन सरकार इसे टालती रही। क्योंकि लोकायुक्त नियुक्त होते ही प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, केन्द्रीय मंत्री आदि सबके भ्रष्टाचार की शिकायत लोकायुक्त से की जा सकती है। यह सरकार यह होने नहीं देना चाहती है। इसलिए पहले तो इसे खींचती रही। बहुत दबाव पड़ा है तो लोकसभा चुनाव करीब आने पर इसके लिए एक बड़ी कमेटी बना दी है। जो लोकपाल पद के लायक लोगों का नाम छांटकर सूची बनायेगी। जिस पर अंतिम मुहर भारत के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष तथा राष्ट्रपति द्वारा नामित एक व्यक्ति लगायेंगे।
हालत यह है कि अभी तक सूची तैयार नहीं हो सकी है। क्योंकि इसके लिए जो जरूरी संसाधन चाहिए उसे केन्द्र सरकार ने मुहैया नहीं कराया है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार ने सभी संसाधन मुहैया कराने का आदेश दिया है। इन सबको देखते हुए अन्ना के इस बार के अनशन से केन्द्र सरकार पर कोई असर पड़ेगा और लोकसभा चुनाव के पहले लोकपाल की नियुक्ति हो सकेगी, इसकी संभावना कम है। अन्ना हजारे का कहना है कि यह हड़ताल तब तक जारी रहेगा जब तब सरकार (नरेन्द्र मोदी ) सत्ता में आने से पहले किए गए अपने वादे पूरा नहीं कर देती।
इस मुद्दे पर लोकसभा सांसद व भाजपा किसान मोर्चा अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह का कहना है कि सरकार ने लोकपाल के लिए योग्य व्यक्ति का नाम छांट कर सूची बनाने के लिए एक समिति बना ही दी है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री कार्यालय को लोकायुक्त के दायरे में लाने की बात कह दी गई है। किसानों के उत्पादों के उचित मूल्य दिलाने के लिए पहल कर ही दी गई है। उनके कर्ज की माफी हो ही रही है। उनके लाभ के लिए और भी बहुत कुछ किया जा रहा है। इस तरह अन्ना हजारे की लगभग सभी मांगे पूरी करने का प्रयास किया जा रहा है । इसलिए अन्ना को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए अनशन खत्म कर देना चाहिए।


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