दर्शकों और पाठकों के पास होनी चाहिए कटेंट चुनने की स्वतंत्रता- मनोज वाजपेयी
जयपुर, 11 मार्च (हि.स.)। फिल्म अभिनेता मनोज वाजपेयी का कहना है कि सब जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है, यदि कोई चीज बुरी लग रही है तो उसे मत देखिए। दर्शक और पाठक क्या देखें, क्या पढ़ें इसकी उन्हें स्वतंत्रता होनी चाहिए। जब तक आप वह स्वतंत्रता नहीं देंगे, अच्छा काम नहीं होगा। उन्होंने कहा कि माता-पिता से बड़ा सेंसर कोई नहीं होता।
वाजपेयी शुक्रवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के एक सत्र को संबोधित कर रहे थे। बाद में उन्होंने पत्रकारों से भी चर्चा की।उन्होंने इंटरनेट और ओटीटी प्लेटफार्म पर परोसी जा रही अश्लील सामग्री को लेकर कहा कि जब वह छोटे थे और ट्रेन में सफर किया करते थे तो बड़े जंक्शन पर कई बुक स्टॉल हुआ करती थीं, जहां पर साहित्य और अश्लील दोनों किताबें मिलती थीं, लेकिन ऐसा नहीं कि सभी अश्लील किताबें ही पढ़ते थे। उन्होंने साहित्य खरीदा, या किसी ने मैगजीन खरीदी. ये जानते हुए कि यहां अश्लील किताब भी बिक रही है। ये चुनाव और ये स्वतंत्रता दर्शकों और पाठकों के पास होनी चाहिए। जब तक आप वह स्वतंत्रता नहीं देंगे, अच्छा काम नहींं होगा।
वाजपेयी ने कहा कि माता-पिता से बड़ा सेंसर कोई नहीं होता है, टीचर भी माता-पिता से बड़ा सेंसर नहीं होता। बच्चे ज्यादातर समय परिजनों के पास रहते हैं। यदि बच्चे पर आप ध्यान नहीं दे सकते तो उसकी जिम्मेदारी फिल्म मेकर्स पर थोपने के बजाय आप जिम्मेदारी लें।
वाजपेयी ने कहा कि कोरोना महामारी ने सब बदल दिया। कोरोना एक बुरा वक्त था, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के लिए गोल्डन पीरियड था। कोविड ने फिल्म इंडस्ट्री के सारे डायनेमिक्स ही चेंज कर दिए। फिल्म मेकिंग आसन हो गई है। मुख्य किरदार और सेकेंडरी कैरेक्टर सभी टैलेंट को प्लेटफॉर्म मिल गया है। हर किसी को काम मिल रहा है। अगर आपके पास हुनर है तो आप फिल्म इंडस्ट्री में काम कर सकते है।
बायोग्राफी और बायोपिक में अंतर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बायोग्राफी में सूरज उदय होते हुए को भी पांच लाइनों में लिखा जा सकता है, जबकि बायोपिक में ये काम महज एक शॉट का होता है जो कुछ सेकंड का होता है। उन्होंने दावा किया कि कहा कि फिल्मों का दौर दोबारा शुरू होगा लेकिन ओटीटी का दौर बना रहेगा। ओटीटी कंटेंट का अथाह समुद्र है, जो लोगों को अपने टेस्ट के अकॉर्डिंग कंटेंट देखने की स्वतंत्रता देता है।