जम्मू कश्मीर पर टिप्पणी का पाकिस्तान को हक नहीं
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 पर टिप्पणी से पाकिस्तान की जगहंसाई हुई है। जिस मुल्क का संविधान सेना की मर्जी से चलता है, उसका भारतीय संविधान पर कुछ भी बोलना बेमानी है। पाकिस्तान ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाने को वह मंजूर नहीं करेगा। यहां सवाल यह है कि ऐसा करने के लिए उसकी मंजूरी मांग कौन रहा है। अनुच्छेद 370 रहेगा या हटेगा, इस संबन्ध में भारत को ही अंतिम निर्णय लेना है। पाकिस्तान से कोई मतलब नहीं है। ये बात अलग है कि भारत की कुछ राजनीतिक पार्टियां इस संबन्ध में गलत सन्देश देती हैं। पाकिस्तान अपने निर्माण के बाद से करीब आधे समय तक सैनिक शासन में जकड़ा रहा। शेष अवधि में वहां सेना के अप्रत्यक्ष नियंत्रण वाला शासन रहा है। यहां संवैधानिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री भी सैन्य कमांडरों के रहमोकरम पर ही रहता है। आतंकवाद और विदेश नीति संबन्धी बयान सैन्य कमांडरों की मर्जी से ही जारी होते हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान भी इस व्यवस्था से ऊपर नहीं हैं। उनकी दशा तो अपने को तेजतर्रार शासक समझने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो , बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ से भी गई बीती है। वैसे भी इमरान, बेनजीर की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग के कमजोर होने के बाद सेना के प्रयासों से निर्वाचित हुए थे। नवाज शरीफ ने भारत के साथ संबन्ध सुधारने व आतंकवाद को पाकिस्तान की छवि के खिलाफ बताना शुरू कर दिया था। इसी के बाद उन पर सेना की नजर टेढ़ी हुई। अंततः उन्हें प्रधानमंत्री का पद छोड़ने को विवश कर दिया गया। नवाज शरीफ इसके पहले भी सेना के फैसले से बेदखल किये गए थे। तब परवेज मुशर्रफ ने उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा कर सत्ता पर कब्जा जमाया था। उस घटनाक्रम से पाकिस्तान की हकीकत को समझा जा सकता है। उस समय नवाज शरीफ निर्वाचित प्रधानमंत्री और परवेज मुशर्रफ सेना प्रमुख थे। परवेज श्रीलंका की सरकारी यात्रा से वापस लौट रहे थे। नवाज ने उनको बर्खास्त करने का मन बना लिया था। उनके विमान को पाकिस्तान में उतरने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। इसके बाद सेना का खेल शुरू हुआ। इस्लामाबाद और रावलपिंडी के कोर कमांडरों ने अपना समर्थन परवेज मुशर्रफ को दिया। इतने मात्र से पासा पलट गया। मुशर्रफ का विमान पाकिस्तान में उतरा और नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से बेदखल कर दिया गया। मुशर्रफ सत्ता पर काबिज हुए। बाद में मुशर्रफ दिखावटी चुनाव में राष्ट्रपति बन गए। सेना के प्रभाव की दूसरी नजीर भी उन्हीं से संबंधित है। मुशर्रफ जब तक राष्ट्रपति के साथ-साथ सेना प्रमुख भी थे, उनकी निरंकुशता चलती रही। लेकिन जब सेना प्रमुख पद से रिटायर हुए, उनका सिंहासन हिलने लगा। अंततः उन्हें राष्ट्रपति पद से हटना पड़ा। नवाज शरीफ को तीसरी बार भी सेना के कारण कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। बताया जाता है कि सेना के दबाब में ही सुप्रीम कोर्ट ने उनके परिवार को पनामा मसले पर सजा दिलाई थी। इसके बाद सेना ने ही इमरान खान के लिए रास्ता साफ करने का निर्णय लिया था। पाकिस्तान से अपना देश और संविधान संभल नहीं रहा है, लेकिन भारतीय संविधान को लेकर वह बेचैन है। ऐसा हास्यास्पद प्रदर्शन पाकिस्तान ही कर सकता है। अब उसका कहना है कि भारत के संविधान से कश्मीर संबंधी अनुच्छेद 370 को समाप्त करने को वह मंजूर नहीं करेगा। उसने इसे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करार दिया है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैजल ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करना न ही पाकिस्तान मंजूर करेगा और न ही कश्मीर की जनता इसे स्वीकार करेगी। पाकिस्तान के अलावा भारत के पाकिस्तान परस्त नेताओं को समझना चाहिए कि अनुच्छेद 370 संविधान का अस्थायी उपबन्ध है। इसे अस्थाई अध्याय में शामिल किया गया है। संविधान की संघीय व समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्तियों को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सीमित किया गया है। इसी प्रकार अनुच्छेद 35 ए जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए है। इसके तहत जम्मू कश्मीर को अपने राज्य की नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है। जम्मू कश्मीर में उन लोगों को स्थाई निवासी माना गया है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बसे थे। इन्हीं लोगों को जम्मू कश्मीर में जमीन खरीदने, नौकरी और सरकारी योजनाओं में विशेष अधिकार मिले हैं। देश के किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं हो सकता। उसे यहां स्थायी निर्माण करने, जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है। यह भी व्यवस्था है कि यहां की महिला भारत के किसी व्यक्ति से शादी करती है तो उसके विशेष अधिकार इस राज्य में समाप्त हो जाते हैं। राज्य सरकार की नौकरी अन्य प्रदेश के लोगों को नहीं मिल सकती।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संविधान की यह व्यवस्था भेदभाव को बढ़ावा देने वाली है। फिर भी महत्वपूर्ण यह है कि इसे अस्थाई व्यवस्था के रूप में संविधान का हिस्सा बनाया गया। अनुच्छेद 35 ए तो अदृश्य है। इतने वर्षों बाद संविधान के इस अस्थाई उपबन्ध पर विचार तो किया जा सकता है। भाजपा ने कहा है कि भारत के कुछ विपक्षी नेताओं ने भी पाकिस्तान को ऐसे बयान देने का मौका दिया है। यहां कुछ पार्टियां अपने चुनावी घोषणा पत्र में लिखती हैं कि अनुच्छेद 370 को हटने नहीं देंगे। कोई कहता है कि यह अनुच्छेद हटा तो जम्मू कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा। कोई कहता है कि अनुच्छेद 370 के कारण ही कश्मीर भारत का हिस्सा है। यह अनुच्छेद हटा तो दिल्ली से राज्य का सम्पर्क टूट जाएगा। ऐसे ही नेता भारत द्वारा आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं। इन्हें अपने सैनिकों पर ही विश्वास नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय संविधान की यह व्यवस्था भेदभाव को बढ़ावा देने वाली है। फिर भी महत्वपूर्ण यह है कि इसे अस्थाई व्यवस्था के रूप में संविधान का हिस्सा बनाया गया। अनुच्छेद 35 ए तो अदृश्य है। इतने वर्षों बाद संविधान के इस अस्थाई उपबन्ध पर विचार तो किया जा सकता है। भाजपा ने कहा है कि भारत के कुछ विपक्षी नेताओं ने भी पाकिस्तान को ऐसे बयान देने का मौका दिया है। यहां कुछ पार्टियां अपने चुनावी घोषणा पत्र में लिखती हैं कि अनुच्छेद 370 को हटने नहीं देंगे। कोई कहता है कि यह अनुच्छेद हटा तो जम्मू कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा। कोई कहता है कि अनुच्छेद 370 के कारण ही कश्मीर भारत का हिस्सा है। यह अनुच्छेद हटा तो दिल्ली से राज्य का सम्पर्क टूट जाएगा। ऐसे ही नेता भारत द्वारा आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं। इन्हें अपने सैनिकों पर ही विश्वास नहीं है।