प्रभात झा
देश में 30 वर्षों बाद सन 2014 के आम चुनाव में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिला था। भाजपा को 282 सीटें मिली थी, तो आजादी के बाद अब तक हुए लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को सन 2014 के आम चुनाव में सबसे कम 44 लोकसभा सीटें मिली थीं।
भाजपा को आजादी के बाद वर्षों लग गए, अटल बिहारी वाजपेयी को अखिल भारतीय नेता बनाने में। कांग्रेस को विरासत में ही अखिल भारतीय नेता मिलते रहे। आज स्थिति बदल गयी है। भाजपा के पास अखिल भारतीय स्तर पर जमीन से जुड़े बिना विरासत के नेता हैं। नरेंद्र मोदी जो देश के प्रधानमंत्री भी हैं। वहीं कांग्रेस के पास आज एक भी नेता नहीं है, जिसका अखिल भारतीय स्वरुप हो। कहने को भले ही कहें कि कांग्रेस के पास राहुल गांधी हैं। लेकिन देश उन्हें विरासती नेता तो मानता है, पर जनता का या स्वयं संघर्ष करके आगे आये नेता के रूप में नहीं देखता।
आज देश एक बात पर ध्यान दे रहा है। नरेंद्र मोदी भारत की जनता द्वारा निर्मित नेता हैं। देश ने उन्हें नेता स्वीकार किया है। नरेंद्र मोदी को सिर्फ भाजपा ने नहीं, बल्कि भारत ने स्वीकार किया है। राहुल गांधी को परिवार की पार्टी ने स्वीकारा है, कांग्रेस ने नहीं। कांग्रेस अब राजनीतिक पार्टी नहीं बची है, क्योंकि वह सिर्फ परिवार की पार्टी बन चुकी है। आजादी वाली कांग्रेस की यह दुर्दशा किसी और ने नहीं बल्कि गांधी परिवार ने ही की है। इसके लिए गांधी परिवार किसी और को दोषी मान भी नहीं सकता।
आज स्थिति क्या है? देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की लोकसभा में मात्र दो सीटें (मां, बेटे की) हैं। उत्तरप्रदेश की विधानसभा में कांग्रेस के मात्र 7 विधायक हैं। उत्तरप्रदेश में लोकसभा की कुल सीटें 80 हैं और विधानसभा की कुल 405 सीटें हैं। उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा अलग लड़ रही है और कांग्रेस अलग लड़ रही है। इसीलिए यहां की जनता साफतौर पर देख रही है कि कांग्रेस तो कहीं है ही नहीं। उधर, इस बार वायनाड (केरल) से चुनाव लड़ने के कारण अमेठी में ये हल्ला हो चुका है कि राहुल गांधी घबरा गए हैं। सच्चाई यह भी है कि अमेठी की पांच विधानसभा में भाजपा और एक विधानसभा में सपा जीती है। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है। एक और बात, उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का ऐसा कोई प्रदेश स्तरीय नेता नहीं है, जिसकी स्वीकार्यता पूरे उत्तरप्रदेश में हो।
एक नजर बिहार पर भी डालें। बिहार में इस समय कांग्रेस का एक भी ऐसा नेता नहीं है, जो प्रदेशभर में लोकप्रिय हो। यहां भाजपा और जदयू की स्थिति के सामने महागठबंधन पूरी तरह शून्य की स्थिति में आ चुका है। उत्तर प्रदेश में तो सपा के अखिलेश यादव हैं, बसपा के पास सुश्री मायावती हैं, पर बिहार में तो तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की आपसी लड़ाई उभरकर सामने आ रही है। वाई-एम समीकरण के सहारे चलने वाली लालू यादव की पार्टी समाप्ति की ओर जा रही है। अभी जो चर्चा है, उसमें महागठबंधन को बिहार में कोई भी सीट मिलती नहीं दिख रही है। कांग्रेस को विधानसभा में मात्र 27 सीटें मिली थीं, वह भी लालू यादव के सहारे।
कमोवेश गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के साथ-साथ झारखंड में यह बात सच है कि भाजपा को सभी सीटें नहीं मिलेगी, पर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस की स्थिति वैसी नहीं बनी हुई है जैसी भाजपा की है। भाजपा इन राज्यों में कांग्रेस से बहुत आगे है। अब कांग्रेस को सीटें जहां से मिलेगी, वह एक मात्र राज्य छत्तीसगढ़ है। यहां सभी लोग कह रहे हैं कि भाजपा को 5 और कांग्रेस को 6 सीट मिलेंगी।
एक नजर दक्षिण पर डालें। केरल में तो भाजपा संघर्षरत है। राहुल गांधी के मैदान में आने के बाद लोग यह चर्चा कर रहे हैं कि उत्तर भारत में कांग्रेस को डुबाकर राहुल जी दक्षिण की ओर आ रहे हैं। कर्नाटक में भाजपा आगे जा रही है। तमिलनाडु में भी कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। बात रही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की, तो जमीनी सच्चाई यही है कि कांग्रेस बैसाखियों के सहारे कुछ सीटों पर लड़ रही है। यहां यह बात भी सच है कि भाजपा भी तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराने में लगी है। पूरे दक्षिण भारत में इस बात का हल्ला है कि कांग्रेस उत्तर भारत और दक्षिण भारत से गायब हो रही है।
बात रही नार्थ ईस्ट की। इन सातों राज्यों में तो इस बार कांग्रेस की वह स्थिति नहीं है जो सन 2014 में थी। भाजपा असम सहित कई राज्यों में काबिज है। जहां भाजपा नहीं है, वहां भाजपा गठबंधन की सरकार है। इस बार कांग्रेस यहां की 25 लोकसभा सीटों में से मुश्किल से एक-दो सीटें प्राप्त कर पा रही है।
अब बात कर लें पश्चिम बंगाल, ओडिशा और गोवा की। गोवा में कांग्रेस टूट गयी है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। एक बात तो सभी कह रहे हैं कि भाजपा ओडिशा और पश्चिम बंगाल में खाता ही नहीं खोलेगी बल्कि अच्छी संख्या में सीटें भी लेगी। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का खाता कैसे खुलेगा, इस बात को लेकर कांग्रेस के लोग चिंतित हैं।
अब बात करें गत पांच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि की। एक कुशल नेता और भारत को जिस पर गर्व हो, ऐसे नेता की छवि बनी है नरेन्द्र मोदी की। उधर, राहुल गांधी की छवि बचकाने हरकत करने वाली बनी है। वैसे भी मां सोनिया गांधी के बीमार होने के बाद राहुल, बहन प्रियंका वाड्रा को लाये हैं, पर वे पूरी कांग्रेस में अकेली पड़ गयी हैं। देश की जनता भी दलों का आकलन करती है। देश मीडिया को भी देखता है। आज दूध की सफेदी की तरह यह बात साफ़ हो गई है कि भाजपा अपने गठबंधन के सहारे कांग्रेस से आगे ही नहीं है, बल्कि इतनी आगे है जहां से कांग्रेस दिख भी नहीं रही है। वैसे भी अभी जन-जन का स्वर है कि मोदी जी को एक और मौका देना चाहिए।
अच्छा यह होगा कि कांग्रेस सच को समझे और देश को कहे कि हमें एक सशक्त विपक्ष के लिए मतदान करें। वह यह बात इसलिए कह सकती है कि पिछली बार जनता ने कांग्रेस को विपक्ष के रूप में बैठने तक की भी सीटें नहीं दी थी। काश! कांग्रेस सच को समझकर, जनता के सामने सच रखने का साहस दिखा पाती।