जनसंघ से भाजपा के सफर में गया में पहली बार ‘दीया’ और ‘कमल’ नहीं
गया, 24 मार्च (हि.स.)। जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सफर के बीच पहली बार गया में दीया और कमल चुनाव चिह्न मतदाताओं के सामने नहीं होंगे। गया लोकसभा सीट को भाजपा के प्रमुख गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है।
वर्ष 1967 से यहां जनसंघ का दीया चुनाव चिह्न मतदाताओं के बीच आकर्षण का केंद्र बना। 1971 में ईश्वर चौधरी दीया को रौशन कर लोकसभा पहुंचे। ईश्वर चौधरी ने 1977 में भी दोबारा कांग्रेस को शिकस्त देकर लोकसभा में गया का प्रतिनिधितत्व किया। जनसंघ से भाजपा के सफर में सात बार दीया रौशन हुआ और कमल का फूल खिला। एक तरह से जनसंघ और भाजपा उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में हमेशा या तो विजयी रहे या निकटतम प्रतिद्वंद्वी। 2009 एवं 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के हरि मांझी जीते।
इस बार यह सीट जनता दल यू के कोटे में चली गयी है। भाजपा के समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं को पहली बार कमल के स्थान पर तीर पर बटन दबाना होगा। गया शहरी क्षेत्र में भाजपा का व्यापक प्रभाव है।
प्रेम कुमार 1990 से लगातार गया शहरी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व बिहार विधानसभा में कर रहे हैं। शहरी क्षेत्र से भाजपा की लीड का अंतर हमेशा लोकसभा चुनाव परिणाम को प्रभावित करता रहा है। भाजपा प्रत्याशी के चुनाव मैदान में नहीं रहने पर यह अंतर क्या होगा ? इस बात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है।