चुनाव में गरजने लगीं आरोपों-प्रत्यारोपों की जुबानी तोपें
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद पेचीदा हो चला है। हर राजनीतिक दल ने अपने चुनावी महारथियों को मैदान में उतार दिया है। आरोपों-प्रत्यारोपों की तोपें गरजने लगी हैं। वाग्बाणों से कौन आहत हो रहा है, किस हद तक आहत हो रहा है, इसे जानने और समझने की फुर्सत फिलहाल किसी को नहीं है। सब बस बोले जा रहे हैं। यह तो वही बात हुई कि ‘मरता है कोई तो मर जाए, हम तीर चलाना क्यों छोड़ें।’
पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होना है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर के लिए वोट पड़ने हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से क्लीन स्वीप किया था। इन सीटों से इसबार भाजपा के संजीव बालियान, सत्यपाल सिंह, राजेंद्र अग्रवाल, डॉ. महेश शर्मा, वीके सिंह, राघव लखनपाल, कुंवर भारतेन्द्र सिंह, रालोद के अजित सिंह, जयंत चौधरी, कांग्रेस के इमरान मसूद, नसीमुद्दीन सिद्दिकी, बसपा के हाजी याकूब और सपा से तबस्सुम हसन चुनाव मैदान में हैं। हालांकि इसबार का चुनाव पिछली बार जैसा बिल्कुल नहीं है। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन और कांग्रेस से भाजपा को जहां सीधी चुनौती मिल रही है, वहीं इन दलों के नेता भी भाजपा को चौतरफा चक्रव्यूह में फंसाने में जुटे हैं। ऐसे में मोदी लहर पर सवार होकर विजय की मंजिल तय कर पाने वाले भाजपा सांसदों की जीत की राह इसबार आसान नहीं है।
मुजफ्फरनगर सीट पर इसबार सीधा मुकाबला जाट उम्मीदवारों के ही बीच है। रालोद अध्यक्ष अजित सिंह ने बागपत की बजाय मुजफ्फरनगर का रुख कर रखा है। उनके सामने मौजूदा भाजपा सांसद संजीव बालियान हैं। पिछले चुनाव में 6 लाख से ज्यादा मत पाने का संजीव बालियान का रिकॉर्ड है। मुजफ्फरनगर सीट पर जाट और मुसलमान मतदाता ही परिणाम तय करते हैं। हालांकि कांग्रेस ने अभी इस सीट से कोई उम्मीदवार उतारा नहीं है। लिहाजा मुस्लिम वोट एकमुश्त गठबंधन को जाता नजर आ रहा है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को तलाक से निजात दिलाने की जो कोशिश की है, उसका चुनाव पर असर न पड़े, ऐसा संभव नहीं है। कैराना सीट पर हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को टिकट न देने से उनके समर्थकों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। इस सीट पर हुए उपचुनाव में तबस्सुम हसन से मृगांका हार गई थीं। इसबार इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी हैं। भाजपा के प्रदीप चौधरी को कांग्रेस के हरेंद्र मलिक और सपा-बसपा गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन से बड़ी चुनौती मिल रही है।
सहारनपुर सीट पर 2014 में भाजपा के राघव लखनपाल जीते थे। उनके सामने इसबार कांग्रेस से इमरान मसूद और गठबंधन के हाजी फजलुर्रहमान मैदान में हैं। अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो भाजपा लाभ की स्थिति में आ सकती है। बिजनौर लोकसभा सीट पर एकबार फिर भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद कुंवर भारतेन्द्र सिंह पर दांव खेला है। उन्हें कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दिकी और गठबंधन के मलूक नागर से कड़ी चुनौती मिल रही है। इस सीट पर करीब 35 फीसदी मुस्लिम और तीन लाख दलित और दो लाख जाट मतदाता हैं। मेरठ सीट भाजपा का गढ़ रही है। दो बार के उसके सांसद राजेंद्र अग्रवाल यहां से एकबार फिर भाजपा प्रत्याशी हैं। वैश्य और जाट बहुल इस सीट पर कांग्रेस ने भी एक वैश्य उम्मीदवार हरेंद्र अग्रवाल को मैदान में उतार दिया है। गठबंधन की तरफ से हाजी याकूब कुरैशी मैदान में हैं। अगर कांग्रेस भाजपा के वोट काटने में सफल रहती है तो बसपा की यह सीट निकल सकती है।
बागपत से भाजपा की ओर से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। आरएलडी प्रमुख अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी यहां से खम ठोंक रहे हैं। कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर से अजित सिंह और बागपत से जयंत सिंह के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। बल्कि, कांग्रेस रालोद का समर्थन कर रही है। इसलिए इस सीट पर अब सीधा मुकाबला बीजेपी और गठबंधन उम्मीदवार के बीच है। गाजियाबाद लोकसभा सीट से पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह भाजपा प्रत्याशी हैं। उनके मुकाबले कांग्रेस की डॉली शर्मा और गठबंधन के सुरेश बंसल चुनाव लड़ रहे हैं। गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट से भाजपा ने एकबार फिर महेश शर्मा पर दांव लगाया है। सपा-बसपा-आएलडी गठबंधन के उम्मीदवार सतवीर नागर हैं, जबकि कांग्रेस ने यहां अरविंद सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर सर्वाधिक गुर्जर और राजपूत मतदाता हैं।
कांग्रेस के घोषणापत्र के बाद सपा ने भी अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी कर दिया है। बसपा अपना चुनाव घोषणापत्र जारी करती ही नहीं। उम्मीद है कि भाजपा जल्द ही अपना चुनावी संकल्प पत्र जारी कर दे। वैसे, मायावती ने कांग्रेस के घोषणापत्र को छलावा बताया है। भाजपा तो उसे ढकोसला मात्र बता ही रही है। राजनीतिक दल जिस तरह से एक-दूसरे की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें देश के लिए घातक बता रहे हैं, इसका चुनाव में असर तो पड़ना ही है। भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में जिस तरह 0.25 प्रतिशत की कमी की है और सर्वोच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को उनके पूरे वेतन पर पेंशन देने का जो निर्णय दिया है, उसका असर भी इस चुनाव में भाजपा को मिल सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहारनपुर में विपक्ष पर निशाना साधकर भाजपा प्रत्याशियों की राह आसान कर दी है। उन्होंने कांग्रेस पर बोटी-बोटी गैंग का साथ देने का आरोप लगाया है। चाय वाले से चौकीदार तक की इस यात्रा में देश प्रथम का भाव व्यक्त कर नरेंद्र मोदी ने विपक्ष की हालत पतली कर दी है। उन्होंने कहा है कि इस चौकीदार का ध्येय किसान, जवान या नौजवान को सुरक्षा, समृद्धि और सम्मान प्रदान करना है। प्रधानमंत्री ने विपक्षी गठबंधन को महामिलावट करार देते हुए कहा है कि इन महामिलावटी लोगों के आचरण से पता चलता है कि सत्ता में आने पर उनकी कार्यशैली क्या होगी। जात-पात के आधार पर होने वाले जुल्म, बेटियों के साथ हुए अत्याचार, मुज़फ्फरनगर दंगे, सहारनपुर के बाजारों में हुई आगजनी का जिक्र कर उन्होंने पूर्ववर्ती प्रदेश सरकारों की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। कांग्रेस को पिछड़ा विरोधी बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस ने कभी भी पिछड़ों के हितों की रक्षा नहीं की। संसद में राजीव गांधी ने मंडल कमीशन का विरोध किया। कांग्रेस को ओबीसी कमीशन पर भी ऐतराज है। हमने सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत का आरक्षण देने की व्यवस्था की लेकिन कांग्रेस तो ढकोसलों से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई। 40 साल से लटका वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा हमने किया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को लटकाने और भटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन दलों के आतंकवाद पर नरम रवैये की वजह से कुछ लोगों के हौसले बुलंद हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि आतंकियों को उन्हीं के तरीके से जवाब देना, देश के ही कुछ लोगों को परेशान करता है। मजबूत सरकार ही कड़े और बड़े फैसले ले पाती है। उन्होंने इस बात का भी दावा किया कि मोदी आतंक को वोट बैंक में नहीं तौलता। उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा और दिल्ली में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कभी लखनऊ तो कभी काशी तो कभी रामपुर के सीआरपीएफ कैंप पर हमला होता था। बीते 5 वर्षों से धमाके रुके हैं, बम-बंदूकों की आवाज बंद हुई है। आतंकियों को पता है कि वे एक भी गलती करेंगे तो मोदी उन्हें पाताल में भी सबक सिखाएगा। हमने मुस्लिम बहनों को मेहरम के बिना हजयात्रा का अधिकार दिया। हमने मुस्लिम बेटियों के सम्मान में उन्हें तीन तलाक के कुचक्र से मुक्त कराया। उन्होंने मुस्लिम बेटियों को भी एसपी-बीएसपी और महामिलावट वाले दलों के प्रति आगाह किया। ये दल तीन तलाक कानून नहीं बनने देना चाहते। उन्होंने देशद्रोह कानून समाप्त करने और अफस्पा की समीक्षा जैसे कांग्रेस के चुनावी दावों पर भी सवाल खड़ा किए। मतलब राजनीतिक दल जिस तरह से एक-दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं, उससे मौजूदा लोकसभा चुनाव ज्यादा रोमांचक ओर कांटे के मुकाबले वाला हो गया है। देखना यह होगा कि जनता इसबार किस पर और किस हद तक यकीन करती है।