गंगासागर के पुण्यार्थियों का ममता ने किया स्वागत
कोलकाता, 13 जनवरी (हि.स.)। गंगासागर में पुण्य स्नान के लिए पहुंचे लाखों पुण्यार्थियों का राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वागत किया है। रविवार सुबह उन्होंने इस बारे में बयान जारी किया। इसमें ममता ने कहा है कि कहते हैं “सब तीरथ बार-बार और गंगासागर एक बार।” गंगासागर मेले में पुण्य स्नान के लिए जो भी पुण्यार्थी आए हैं, उन्हें मैं शुभकामना देते हुए स्वागत कर रही हूं।
ऐसी मान्यता है कि यहां सागर तट पर ही कपिल मुनि के श्राप से राजा सागर के 60 हजार पुत्र मारे गए थे लेकिन उन्हें मोक्ष नहीं मिला था। इसलिए आगे चलकर राजा सागर के वंश में जन्म लेने वाले महात्मा भगीरथ ने कठिन तप किया और स्वर्ग से गंगा को धरती पर उतारा। विष्णु के पैर को छूकर स्वर्ग से निकली गंगा धरती पर शिव की जटाओं में गिरी और वहां से बहते हुए मकर संक्रांति के दिन कपिल मुनि के आश्रम तक पहुंची यहां सागर तट पर आश्रम के पास मृत पड़े राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को जब गंगा का स्पर्श प्राप्त हुआ तब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद हर साल पंचांग के अनुसार उसी मुहूर्त में पुण्य स्नान के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि उसी मुहूर्त में गंगासागर में पुण्य स्नान से मोक्ष मिलता है। पिछले साल करीब 25 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचे थे जबकि इस साल 30 लाख से अधिक लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। लोगों की सुविधाओं के लिए राज्य सरकार ने पुख्ता व्यवस्था की है। ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है, पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया पर उन्होंने विष्णु भगवान के समक्ष शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली और कपिलमुनि का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं, वे राज्य अधीनता स्वीकार करते हैं। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सागर ने यज्ञ अश्वों की रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। राजा सागर के दुश्मनों में शामिल एक दैत्य ने उस अश्व चोरी से ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था। जब सगर पुत्रों ने देखा कि अश्व कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ है तो उन्हें लगा कि मुनि ने हीं अश्व को पकड़ा है। फलत: सगर पुत्र साधनारत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सागर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व हैै।