किम और पुतिन के बीच शिखर वार्ता रूस में, खनक अमेरिका में
लॉस एंजेल्स, 25 अप्रैल (हि.स.)। उत्तरी कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर वार्ता मास्को से दूर व्लादिवोस्टोक शहर में हो रही है, पर इसकी खनक हजारों मील दूर वॉशिंगटन में सुनाई पड़ने लगी है। कहा जा रहा है कि क्या किम जोंग उन अपनी वैश्विक छवि बनाने में लगे हैं अथवा वाशिंगटन को एक संदेश भर देना चाहते हैं कि वह कूटनीतिक बिसात पर शतरंजी चाल चलने में भी माहिर हैं।
अमेरिकी रणनीतिकारों की चिंता इस बात को लेकर है कि क्या मॉस्को और बीजिंग ने दस साल पहले छह बड़े देशों की भागीदारी से उत्तरी कोरिया के निरस्त्रीकरण और कोरियाई प्रायद्वीप में संघर्षरत दो देशों के बीच सामंजस्य बनाने का जो बीड़ा उठाया था, उसे फिर से पुनर्जीवित किया जा सकेगा? इस मुद्दे पर सन 2009 में छह देशों-चीन, रूस, जापान, कोरिया, अमेरिका और उत्तरी कोरिया ने वार्ता की शुरुआत करने तथा शांति की अलख जगाने की बात की थी, लेकिन उत्तरी कोरिया पीछे हट गया था।
हनोई वार्ता से बैरंग लौटने के बाद किम पहली बार रूस के राष्ट्रपति पुतिन से मिलने रूस पहुंचे हैं, जहां उनके पिता किम जोंग इल दो बार, एक बार 2002 तथा फिर 2011 में रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति दिमित्री मदवेदेव से मिल चुके हैं। रूस की उत्तर पूर्वी एशिया में कूटनीतिक संबंधों के विस्तार की बात यहां एक बार छोड़ भी दें तो रूस की कारोबारी लहजे में उत्तरी कोरिया से ज्यादा अपेक्षाएं नहीं हैं।वह सिर्फ खनन और गैस पाइप लाइन बिछाई जाने को लेकर दिलचस्पी रखता है।। इसके विपरीत, किम जोंग उन की यह कोशिश जरूर होगी कि वह चीन के समर्थन के साथ रूस का भी नैतिक समर्थन हासिल कर अमेरिका पर अपेक्षित दबाव बनाए रख सके।
उत्तरी कोरिया और चीन के बीच पूर्वी सीमाएं संकरी हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद ड्रैगन उसका सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है। दोनों ही देश सुरक्षा परिषद और अमेरिका की आंखों की किरकिरी बनने के बावजूद टिके हुए हैं। ऐसी स्थिति में उत्तरी कोरियाई शासक किम की एक ही कोशिश है कि उस पर आर्थिक प्रतिबंधों का जंजाल हटाया जाए। किम भली भांति जानते हैं कि अमेरिका की दुखती नब्ज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पास है और वह पिछले कुछ सालों में उनसे चार बार मिल चुके हैं।
वाशिंगटन में रणनीतिकारों का स्पष्ट मत है कि जैसे-जैसे उत्तरी कोरिया से दोस्ताना वार्ता होती है, चीन के साथ ‘व्यापार युद्ध’ के बारे में वार्ताएं शिथिल होने लग जाती है। अब जैसे ही किम जोंग उन ने हनोई में दूसरी शिखर वार्ता के विफल होने के बाद रूस के राष्ट्रपति के साथ शतरंज की बिसात बिछानी प्रारंभ की है, वॉशिंगटन में सत्ता के गलियारे में घंटियों की ध्वनि तेज हो गई है।
अभी पिछले दिनों जिस तरह किम जोंग उन के सलाहकार किम जोंग चुल के हवाले से अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन को संभावित तीसरी शिखर वार्ता से बाहर रखने की बात की गई है, वह अमेरिकी हितों को कचोटने वाली सिद्ध हुई है। इसके बावजूद ऊंट किस करवट बैठता है, यह बड़ा मुद्दा है।