कारगिल युद्ध के नायक की जुबानी : मैं जिंदा हूं या मर गया यह जानने के लिए पाकिस्तानियों ने दाग दी मेरे ऊपर गोलियां

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यह जानते हुए कि दुश्मन का सामना करते समय मौत निश्चित है, इसके बावजूद सैनिकों के दिमाग में अपनी सुरक्षा अंतिम होती है और राष्ट्र तथा इसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि होती है, यह कहना है  करगिल युद्ध  के नायक एवं परमवीर चक्र से सम्मानित वाईएस यादव का. दो दशक पहले सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव की तैनाती 18 ग्रेनेडियर्स में हुई थी और वर्ष 1999 में जब उन्होंने करगिल युद्ध लड़ा तब वह महज 19 साल के थे. यादव यहां देश के पहले सैन्य साहित्य महोत्सव में हिस्सा लेने के लिये आये थे. उन्होंने कहा कि वह कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे, जिसे ‘टाइगर हिल’ पर सामरिक बंकरों को कब्जाने का जिम्मा दिया गया था. उन्होंने कहा, ‘‘चार जुलाई (1999) को टाइगर हिल पर चढ़ाई करनी थी और हमारे समूह में सात लोग थे. 90 डिग्री की सीध में हमें खड़ी चढ़ाई करनी थी. चारों ओर से हम पर मौत का खतरा था. हम जानते थे कि हम मरने वाले हैं लेकिन कम से कम क्षति हो इसके लिये हम दृढ़संकल्प थे और इसी इच्छाशक्ति के साथ हम आगे की ओर बढ़ रहे थे.’’ यादव ने कहा कि दुश्मन की गोलीबारी में 12 गोलियां लगने और गंभीर रूप से घायल होने के बाजवूद मैंने उन्हें (दुश्मन सेना) चकमा दिया और उनके पांच सैनिकों को मार गिराया.


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