एससी-एसटी एक्ट: केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर जुलाई में सुनवाई
नई दिल्ली,16 मई (हि.स.)। एससी-एसटी एक्ट में तत्काल एफआईआर और गिरफ़्तारी पर रोक लगाने वाले फ़ैसले के ख़िलाफ केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जुलाई में सुनवाई करेगा। फिलहाल कोर्ट के 20 मार्च के आदेश पर कोई रोक नहीं लगाई है। आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि गिरफ़्तारी से पहले शिकायत की जांच करने का आदेश संविधान की धारा 21 में व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि संसद भी अनुच्छेद 21 के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार व निष्पक्ष प्रक्रिया को नजरअंदाज करने वाला कानून नहीं बना सकती है। कोर्ट ने कहा ये कैसा सभ्य समाज है जहां किसी के एकतरफा बयान पर लोगों पर कभी भी गिरफ्तारी की तलवार लटकती रहे। पिछले 3 मई को सुनवाई के दौरान केंद्र की तरफ से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि हजारों साल से वंचित तबके को अब सम्मान मिलना शुरू हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस तबके के लिए बुरी भावना रखने वालों का मनोबल बढ़ाने वाला है। जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि कोर्ट का दिशा-निर्देश शिकायत के आधार पर बिना जांच के गिरफ्तारी रोकने के लिए है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि चौथे दिशा-निर्देश में कहा गया है कि डीएसपी की संतुष्टि के बाद ही अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा सकता है। तब जस्टिस गोयल ने कहा कि हां, हमने कहा है कि एफआईआर से पहले अफसर संतुष्ट हो कि किसी को झूठा नहीं फंसाया जा रहा है। केंद्र सरकार एससी-एसटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में लिखित जवाब दाखिल कर चुकी है। केंद्र सरकार ने कहा है कि फैसले पर पुनर्विचार हो, फैसले से देश मे अफरातफरी और सौहार्द बिगड़ गया है। केंद्र ने कहा है कि कोर्ट के फैसले ने मुख्य कानून की धाराओं को कमजोर कर दिया है। ये फैसला संविधान में दी गई शक्तियों के बंटवारे का उल्लंघन है। फैसला का हालिया आदेश कानून का उल्लंघन, इस आदेश ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। केंद्र सरकार ने कोर्ट से तुरंत गिरफ्तारी पर रोक का आदेश वापस लेने की मांग की है और कहा है कि कोर्ट कानून में इस तरह बदलाव नहीं कर सकता। कानून बनाना संसद का अधिकार। संज्ञेय अपराध में एफआईआर पुलिस का काम है। डीएसपी की प्राथमिक जांच के बाद एफआईआर का आदेश गलत है। पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट पर दिए गए दिशा-निर्देशों पर कोई रोक लगाने से इनकार किया था। केंद्र सरकार के रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि हम एससी, एसटी एक्ट के खिलाफ नहीं हैं लेकिन इस एक्ट के जरिए बेगुनाहों को सजा नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरोपी के खिलाफ कार्रवाई से पहले शिकायत की पड़ताल कर ली जाए तो इसमें क्या दिक्कत है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करनेवालों ने फैसला पढ़ा भी नहीं होगा। इन प्रदर्शनों के पीछे स्वार्थी तत्व हैं । हमारी चिंता उन बेकसूर लोगों को लेकर है जो बिना किसी गलती के जेल में हैं। हमारी चिंता एक्ट के दुरुपयोग को लेकर है। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि बिना वेरिफिकेशन के गिरफ्तारी का सरकार विरोध क्यों कर रही है।