उष्ट्र अभ्यारण्य’ का निर्माण होने से मिलेगा ‘उष्ट्र इको-टूरिज्म’ को बढ़ावा

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बीकानेर, 24 दिसम्बर (हि.स.)। आमजन द्वारा टाइगर सफारी व लॉयन सफारी का भरपूर आनंद लिया जाता है तो सरकारी प्रयास द्वारा उष्ट्र बाहुल्य क्षेत्रों में ‘उष्ट्र अभ्यारण्य’ का निर्माण करवाए जाने से उष्ट्र इको टूरिज्म को विशेष बढ़ावा मिल सकेगा। यह विचार शुक्रवार को राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आयोजित कृषक संगोष्ठी एवं उष्ट्र पालन कार्यशाला के अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने किसानों को संबोधित करने के दौरान व्यक्त किए।

एनआरसीसी एवं उरमूल सीमांत समिति, बज्जू के संयुक्त तत्वावधान में इस आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. साहू ने उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़ी ज्वलंत समस्याओं उठाते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया कि उन्हें उष्ट्र पालन से जुड़े ठोस मुद्दों के साथ समाधान भी ढूंढने चाहिए ताकि सरकारी स्तर पर उनके निराकरण के प्रयासों में आसानी हो सके। डॉ. साहू ने कहा कि राजस्थान देश का उष्ट्र बाहुल्य राज्य होने के उपरांत भी यहां प्रजाति के घटाव/घटने का प्रतिशत लगभग 35 है जबकि गुजरात राज्य में यह लगभग 9 प्रतिशत है, ऐसे में राज्य पशु का दर्जा प्राप्त होने पर इस प्रजाति के रखरखाव एवं प्रबंधन के समुचित उपाय अपेक्षित है। उरमूल सीमांत, बज्जू द्वारा प्रेरित श्री बालीनाथ उष्ट्र दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति लिमिटेड के बीकानेर, जैसलमेर व जोधपुर जिले के लगभग 55 सदस्य ऊंटपालकों ने अपनी सहभागिता निभाई। इन फेडरेशनों के अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह, श्रीराम एवं जोराराम ने ऊंट एवं इसके पालकों की समस्याओं एवं मांगों, ऊंटों की तेजी से घटती संख्या, चरागाह की कमी, उपजाऊ भूमि का खेती के स्थान पर अन्य कार्यों हेतु उपयोग में लाया जाना, गोचर भूमि के संरक्षण, गौशाला चारा अनुदान के अनुरूप ही अकाल एवं आपात स्थिति में ऊंटों के लिए चारा अनुदान उपलब्ध करवाने, ऊंटों से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को लागू करने के अलावा इसकी राशि 30 हजार किए जाने, ऊंट अभ्यारण्य बनाने और विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार रखे। फेडरेशन के तहत आने वाले तीनों जिलों के करीब 3500 ऊंटपालक परिवार सम्मिलित है जिनके पास लगभग 35.40 हजार के करीब ऊंट-ऊंटनियां उपलब्ध है। फेडरेशनों से जुड़े किसानों द्वारा ऊंटनी के दूध से बनी विभिन्न कुकीज की प्रदर्शनी भी लगाई गई। साथ ही एनआरसीसी द्वारा निर्मित ऊंटनी के दूध से बनी चाय व खीर का सभी को रसास्वादन करवाया गया। इस संगोष्ठी के समन्वयक केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुमन्त व्यास द्वारा सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया।


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