उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना पांच जनवरी से दोबारा परवान चढ़ेगी

0

 

No

प्रधानमंत्री पांच जनवरी को करेंगे शिलान्यास, बहुरेंगे इलाके के दिन
बिहार के लिए भी जरूरी … मेदिनीनगर, 03 जनवरी (हि.स.) झारखंड राज्य के लातेहार जिला अंतर्गत बरवाडीह के मंडल में वर्षों से अधूरी उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना सोन नदी की सहायक उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है। आखिरकार इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने की पहल वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने की है। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना पर लगभग 1600 करोड़ खर्च किया जाना है।
इस परियोजना का ऑनलाइन शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेदनीनगर शहर स्थित चियांकी हवाई अड्डा परिसर में आयोजित समारोह में आगामी पांच जनवरी को करेंगे। समारोह में प्रधानमंत्री करीब एक घंटा रुकेंगे। इस दौरान उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के दोबारा परवान चढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा। यह परियाजना मंडल डैम के रूप में भी चर्चित है।
उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना 1972 में शुरू हुई थी
उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना पलामू व गढ़वा जिलों के बेहद पिछड़े जनजातीय इलाकों में स्थित है। इसका निर्माण कार्य 1972 में शुरू किया गया था। 1993 में बिहार सरकार के वन विभाग ने इसे बंद कर दिया। तब से लेकर आज तक इस बांध का निर्माण कार्य ठप पड़ा हुआ है। इस परियोजना पर करीब 780 करोड़ रुपये खर्च भी किये जा चुके हैं। पहले इस परियोजना में 819 मीटर लंबे बैराज और सिंचाई के लिए दो नहरें बनाई जानी थी। 47 वर्ष बाद उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना दोबारा परवान चढ़ने की ओर है। अब इस परियोजना की कुल लागत 2391 आंकी गई है। इस परियोजना में अब बांध की ऊंचाई घटाकर 341 मीटर कर दी गई है। इससे जल संग्रहण की क्षमता करीब 190 एमसीएम हो जाएगी।
देश में यह एक ऎसी परियोजना है, जिसे 1972 में शुरु कर 21 साल तक लगातार काम चलता रहा हो| उस पर 780 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हों और उसे रोक दिया गया हो। इस परियोजना के पूर्ण होने से तीन विकट समस्याओं से लोगों को निजात मिलेगी। पहला, बिजली समस्याओं का हल हो जायगा। इस परियोजना का काम पूरा होने से 24 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। इससे पलामू प्रमंडल को पर्याप्त बिजली मिलने लगेगी। दूसरा, सिंचाई की समस्या का पूर्णतया समाधान हो जाएगा। इस जल विद्युत परियोजना से बिहार और पलामू प्रमंडल सहित करीब 4 लाख 40 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचित होगी। इससे लगभग 24 लाख किसान सिर्फ बिहार के लाभान्वित होंगे। यहां की सबसे गंभीर समस्या पेयजल की है जिसे दूर करने के लिए इस परियोजना से पेयजलापूर्ति करने की भी योजना बनाई गई थी। इसके अलावा परियोजना के डैम में पानी जमा होने पर जलस्तर काफी ऊपर आ जाएगा, जिससे सुखाड़ और गर्मी में गहराते जा रहे जल संकट से ग्रामीणों को स्थाई रूप से निजात मिल जाएगी। साथ ही बांध के डूब क्षेत्र में आए बेतला राष्ट्रीय उद्यान और पलामू टाइगर रिजर्व को भी बचाया जा सकेगा। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का लगभग 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।
माओवादियों का कहर भी इस मंडल डैम परियोजना पर बरसा और निर्माण कार्य में लगे एक इंजीनियर बैजनाथ मिश्रा की हत्या 16 अगस्त 1997 को माओवादियों ने गोली मारकर कर दी थी। नक्सलियों ने कुटकू में आई बाढ़ से मची तबाही के लिए उक्त अभियंता को दोषी माना था। यह घटना भी परियोजना के ग्रहण का कारण बनी थी।
उपकरणों का नुकसान
परियोजना में काम नहीं होने से और रखरखाव के अभाव में अब तक कई उपकरणों को नुकसान पहुंचा है। इस परियोजना के प्रयोग के लिए आये 550 केवीए के तीन जेनरेटर खराब हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार 2 अप्रैल 1999 में परियोजना स्थल के आसपास आग लग जाने से छह जीप, दो ट्रक, सात ट्रैक्टर, एक रोड रोलर और 70 नए टायर जलकर राख हो चुके हैं। कई स्टाफ के घर भी ध्वस्त हो चुके हैं। उसका मलबा माफिया द्वारा ट्रैक्टर से ले जाकर बेच दिया गया है। दूसरी ओर, वीरान पड़ी इस परियोजना में लगे लोहा चोरी करने वाले गिरोह भी सक्रिय हैं। ट्रैक्टर व अन्य वाहनों द्वारा बाजारों तक बेचा जा रहा है। क्षेत्र के वीरान होने व सुरक्षा के अभाव का पूरा लाभ माफिया उठा रहे हैं। इसका विरोध कोई नहीं कर पाता है।
परियोजना से 6013 परिवार होंगे विस्थापित
इस परियोजना में गढ़वा ज़िले के भंडरिया प्रखंड के 16 गांव और लातेहार ज़िले के बरवाडीह प्रखंड के तीन गांव डूब क्षेत्र में शामिल हैं। इन 19 गांवों में 749 परिवारों के 6013 लोग विस्थापित होंगे। इनमें 5002 आदिवासी , 303 दलित तथा 681 अन्य जातियों के लोग शामिल हैं। डैम की वजह से 38,508.21 एकड़ भूमि जलमग्न होगी, जिसमे 3044.38 एकड़ रैयती भूमि, 12756.51 एकड़ गैर मजरूवा भूमि तथा 2266.72 एकड़ वनभूमि शामिल हैं।
222.40 फुट है बांध की ऊंचाई
वर्ष 1985 में पुनरीक्षित कर प्राक्कलित राशि को 439 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इस बांध की ऊंचाई 222.40 फुट है। इस परियोजना में 405 एकड़ लाख एकड़ फुट पानी से सिंचाई करने के लिए मोहम्मदगंज में 2589 फुट लंबा बराज बनाया गया है। मोहम्मदगंज बराज से जिस मुख्य नहर का निर्माण किया गया है, उसकी लंबाई 110 किलोमीटर है। इनके अलावा औरंगाबाद जिले के 3.25.000 एकड़ और गया ज़िले के 75,000 एकड़ सजल कमान क्षेत्र में सिंचाई करने का लक्ष्य रखा गया था।

 


 


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *