इमरान क्यों चाहते हैं राजग सरकार की वापसी!
विश्व में अपने ढंग का यह शायद पहला उदाहरण है। जिस सरकार ने अपने सैनिकों के बल पर पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की, इमरान खान उसी की वापसी को पाकिस्तान के लिए बेहतर बता रहे हैं। उन्हें इस सरकार से कश्मीर समस्या के समाधान की उम्मीद है। यहां तक तो बयान ठीक है। इस पर आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन इसकी अगली लाइन में वह इस मसले पर पाकिस्तान के साथ समझौते की बात करते हैं। भारत में मुसलमानों की उपेक्षा का आरोप लगाते हैं। इन्हीं से इमरान की शरारत उजागर हो जाती है। राजग सरकार का रुख तो बिल्कुल स्पष्ट है। समझौते की बात तो बहुत दूर, उसका कहना है कि सीमापार से आतंकवाद जब तक नहीं रुकेगा, पाकिस्तान से वार्ता नहीं होगी। ऐसे में राजग की सरकार वापस होती है तो पाकिस्तान और इमरान की मुसीबत बढ़ेगी। वह जानते हैं कि नरेंद्र मोदी आतंकवाद के मुद्दे पर सख्त रुख दिखाएंगे।
कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने का निर्णय, युद्ध विराम, ताशकंद व शिमला समझौता कांग्रेस के शासन काल में ही हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की हिमायत की थी। इन सबके बाबजूद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का बयान बेमानी लगता है। उनका कहना था कि भारत में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनती है, तो वार्ता व समझौते में कठिनाई होगी। इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार की वापसी होती है, तो कश्मीर मुद्दे पर किसी तरह के समाधान पर पहुंच सकते हैं। इमरान के बयान की अगली लाइन ज्यादा शरारतपूर्ण है। वह फरमाते हैं कि जम्मू-कश्मीर और भारत में मुसलमान अलगाव महसूस कर रहे हैं। इस समय भारत में जो हो रहा है उसके बारे में मैंने सोचा नहीं था। भारत में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। गौरतलब यह है कि ऐसे ही बयान भारत के कुछ नेता व सम्मान वापसी ग्रुप के लोग भी देते रहे हैं।
मतलब साफ है। इमरान से लेकर ऐसे सभी लोगों को नरेन्द्र मोदी सरकार से परेशानी हो रही है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के भीतर घुस कर आतंकी ठिकाने तबाह किये थे। इस हमले में सैकड़ों आतंकी मारे गए थे। इतना ही नहीं, नरेंद्र मोदी की कूटनीति से पाकिस्तान अकेला पड़ गया है। पहली बार विश्व इस्लामी सम्मेलन में भारत को अपनी बात रखने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। पहली बार पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं हुआ। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन ने पाकिस्तान के आतंकी संगठनों की वित्तीय सहायता रोकने का प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश किया। मोदी के इन सामरिक व कूटनीतिक कदमों ने इमरान खान और पाकिस्तान का दर्द बढ़ा दिया है। इमरान खान के बयान को इस पूरे सन्दर्भ में ही देखना होगा। इसके पहले भाजपा सरकार ने कारगिल में पाकिस्तान को दुम दबाकर भागने को बाध्य कर दिया था। आगरा सम्मेलन में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ सिर पटक कर रह गए। उनका कहना था कि भारत कुछ रियायत दे जिससे वह अपने मुल्क में मुंह दिखा सकें। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ऐसे किसी समझौते से इनकार कर दिया था। अटल बिहारी ने लाहौर बस यात्रा के माध्यम से रिश्ते सुधारने का सन्देश दिया था। इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण में बुलाया था। मोदी स्वयं नवाज से मिलने इस्लामाबाद गए थे। इन प्रयासों के बाद पाकिस्तान नहीं सुधरा तो उसे सबक भी सिखाया गया।
ऐसे में इमरान जानते हैं कि भाजपा की सरकार में पाकिस्तान को रियायत नहीं मिलेगी। मनमोहन सिंह सरकार के समय अलगाववादी हुर्रियत नेताओं का का दिल्ली में स्वागत होता था। नरेंद्र मोदी ने इसे बंद कराया। अब अलगाववादी हुर्रियत नेता बड़ी गर्दिश में हैं।
इमरान के इस बयान के पीछे का कारण अलग है। पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों पर नियंत्रण करना इमरान के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। यह विषय वहां के सेना के अधीन है। नरेंद्र मोदी पुनः प्रधानमंत्री बने तो वह पाकिस्तान को ऐसे ही अलग-थलग रखने का कार्य करेंगे। उधर, पाकिस्तान को दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी विदेशी सहायता की जरूरत है। पिछले दिनों इस बात का इमरान रोना लेकर बैठे थे। उनका कहना था कि पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था विदेशी कर्ज में दब चुकी है। कर्ज की बात दूर, अब उसका ब्याज भरने के लिए पाकिस्तान को कर्ज लेने की जरूरत पड़ रही है। बजट घाटा नियंत्रण से बाहर जा रहा है। महंगाई का आंकड़ा दहाई की तरफ बढ़ रहा है। आमजन मूलभूत समस्याओं का अभाव झेल रहा है। इमरान प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन उनसे हालात सुधर नहीं रहे हैं। पाकिस्तान के हालात पहले से ज्यादा खराब हो गए हैं। इमरान विदेशों से निवेश हासिल करने में विफल रहे हैं। वहां निवेश का माहौल ही नहीं रह गया है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स उसे काली सूची में रखने की तैयारी कर रही है। अमेरिकी सांसदों के विरोध के कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज मिलने की संभावना नहीं रह गई है। इमरान भीख का कटोरा लेकर चीन और अरब देशों की चौखट पर जा चुके हैं। लेकिन वहां से मिलने वाली सहायता ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। चीन तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अपनी गिरफ्त में लेने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका और यूरोपीय देश पाकिस्तान से जवाब- तलब करने लगे हैं। वह पूरे कर्ज का ब्यौरा मांग रहे हैं। यह पूछ रहे हैं कि इतने भारी कर्ज की भरपाई वह कैसे करेगा। इसके अलावा आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई के प्रमाण देने को कहा जा रहा है। इमरान जानते हैं कि विदेशों में नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ा है। वह नरेंद्र मोदी का नाम लेकर अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। वैसे यह उनका दिल ही जानता है कि नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी पाकिस्तान के लिए कष्टप्रद होगी।