इतिहास के पन्नों मेंः 03 फरवरी

0

जिस नेता ने जिंदगी के साथ और जिंदगी के बाद भी इतिहास रचाः 03 फरवरी 1969 को तमिलनाडु के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता और राज्य के मुख्यमंत्री कांजीवरम नटराजन अन्नादुरै यानी सीएन अन्नादुरै का 60 वर्ष की उम्र में कैंसर की वजह से निधन हो गया। उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया, क्योंकि उनकी शवयात्रा में एक अनुमान के मुताबिक करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया था।

अपने राजनीतिक जीवन में अन्नादुरै ने कई ऐसे काम किये जिसकी वजह से उन्हें लंबे समय तक याद किया जाएगा। मृत्यु से महज 20 दिनों पहले अन्नादुरै, मद्रास राज्य का नाम बदलवाकर तमिलनाडु करने में सफल रहे। मद्रास राज्य का नाम तमिलनाडु किये जाने का प्रस्ताव विधानसभा से पास करवाकर केंद्र के पास भेज दिया। केंद्र सरकार से मंजूरी के बाद 14 जनवरी 1969 को राज्य का नाम वैधानिक रूप से तमिलनाडु चलन में आ गया।

अन्नादुरै कांचीपुरम के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते थे, जिन्होंने शुरुआत में अंग्रेजी के लेक्चरर के तौर पर काम किया और फिल्मों की पटकथा और नाटक लिखे। वे पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने 40 के दशक से ही द्रविड़नाडु की मांग शुरू की। अन्नादुरै को हिंदी विरोध के लिए जाना जाता है। उन्हें दक्षिण भारत की राजनीति में पहली बार फिल्मी सितारों का कॉकटेल परोसने के लिए भी जाना जाता है। साथ ही तमिलनाडु की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाली कांग्रेस को उखाड़कर उन्होंने क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व वाला राज्य बना दिया।

पेरियार के शिष्य रहे अन्नादुरै का राष्ट्रीय एकता को लेकर जब उनसे मतभेद हुए तो 1949 में अपनी राह बदलकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नामक दल खड़ा कर दिया। दरअसल, अन्नादुरै इस पक्ष में थे कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव में हिस्सा लेकर उसी ढांचे में अपने राज्य के हित के सवाल उठाए जाएं, किसी दूसरे तरीके से नहीं।

आगे चलकर अन्नादुरै ने चुनावी राजनीति में कीर्तिमान रच दिया, इसकी चर्चा से पहले हिंदी विरोध से जुड़ा एक किस्सा। 1962 में अन्नादुरै मद्रास राज्य से राज्यसभा पहुंचे, जहां बलरामपुर लोकसभा सीट से हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे थे। राज्यसभा में इन दोनों नेताओं के बीच हिंदी को राजभाषा बनाने के सवाल पर अक्सर तकरार हो जाया करती थी। एक हिंदी का जितना घनघोर विरोधी, दूसरा उतना ही प्रचंड समर्थक।

हालांकि एक समय बाद दोनों के बीच समझ ऐसी विकसित हुई कि दोनों नेता आपस में दोस्त बन गए। हिंदी पर पकड़ के लिए अन्नादुरै कभी वाजपेयी की तारीफ करने लगे तो वाजपेयी भी जब-तब तमिल साहित्य के बारे में जानने के लिए अन्नादुरै के आवास पर पहुंच जाया करते थे।

दिल्ली की साझा संस्कृति की आबोहवा में अन्नादुरै का हिंदी विरोध कम हो गया। यहां तक कि कभी द्रविड़नाडु की वकालत करने वाले अन्नादुरै ने राष्ट्रीय एकता के प्रति अपनी कटिबद्धता तब दिखायी जब 1962 में चीन युद्ध के समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऑल पार्टी मीटिंग बुलायी। इसमें वाजपेयी और अन्नादुरै साथ-साथ पहुंचे। मीटिंग में अन्नादुरै की बोलने की जब बारी आई तो उन्होंने देश की मजबूत एकता-अखंडता और इसके लिए सरकार के हरेक कदम पर साथ का वायदा कर सबका दिल जीत लिया।

1967 में अन्नादुरै ने तमिल राजनीति का मुहावरा बदलकर रख दिया। उन्होंने विधानसभा चुनाव में मद्रास में कामराज सहित पूरी कांग्रेस पार्टी को ऐसी पटखनी दी, जिससे कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। इस चुनाव से पहले तक कांग्रेस के दबदबे वाले राज्य में डीएमके जैसी महज पंद्रह साल पुरानी पार्टी ने 234 में से 138 सीटें जीतकर सत्ता पर कब्जा कर लिया। अन्नादुरै राज्य के मुख्यमंत्री बन गए।

अन्य अहम घटनाएंः

1509ः दीप में युद्ध की शुरुआत।

1815ः पनीर बनाने का पहला कारखाना स्वीटजरलैंड में खोला गया।

1916ः बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की विधिवत शुरुआत।

1925ः बंबई और कुर्ला के बीच पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चली।

1938ः जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान का जन्म।

1963ः रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का जन्म।


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *