आरएसएस समाज के कल्याण के लिए कार्य करता है: मोहन भागवत
नई दिल्ली, 17 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘भविष्य का भारत: संघ की दृष्टि’ सोमवार शाम दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हो गया है। यह 19 सितम्बर तक चलेगा। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के प्रमुख बुद्धिजीवी भाग ले रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने सम्बोधन के शुरुआत में कहा कि संघ समाज के कल्याण के लिए काम करता है।
उन्होंने आगे कहा कि संघ की आवाज अनूठी है। संघ पब्लिसिटी में विश्वास नहीं रखता है। इसलिए किसी अन्य संस्था की तुलना संघ से नहीं की जा सकती है। डा. हेडगेवार ने कहा था कि आप लोगों के बीच में रहकर भी देश की सेवा कर सकते हो। हमें समाज के आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचकर उसके जीवन में बदलाव लाना पड़ेगा। हमें समाज को शिक्षित करना पड़ेगा। हमें समाज के लोगों का स्तर उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि संघ प्रचार नहीं चाहता लेकिन कार्य का प्रचार चाहता है। शुरुआत में संघ ने प्रचार पर ध्यान नहीं दिया लेकिन समय की आवश्यकता को देखते हुए 1980 में प्रचार विभाग शुरू हुआ। हम संघ कार्य का प्रचार केवल इसलिए कर रहे हैं कि लोग इससे प्रेरित होकर देश समाज के लिए कार्य करें। संघ यह नहीं मानता कि उसके कार्य करने से ही सूर्योदय (अच्छे कार्य होंगे) होगा। अन्य लोग भी इस दिशा में काम कर रहे हैं, जिसका संघ सम्मान करता है।
अन्य संगठनों के बीच समन्यवय की बात करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि संघ किसी को रिमोट के जरिये कंट्रोल नहीं करता । संघ के कार्यकर्ता विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं, जो स्वतंत्र और स्वायत्त तौर पर काम कर रहे हैं। उनकी नीति और निर्णय स्वायत्त हैं। संघ केवल इसका ध्यान रखता है कि कार्यक्षेत्रों में कार्य करते समय संस्कार बने रहें। हमें बस इसकी चिंता करते हैं कि वह कोई गलती न करें।
महिला विषय पर संघ प्रमुख ने कहा कि उसके लिए राष्ट्र सेविका समिति है, जिसका अब पूरे देश में विस्तार हो चुका है। यह महिलाओं के बीच संगठन का कार्य करती है। दोनों अलग अलग काम करते हैं।
संघ प्रमुख ने भगवा और तिरंगा पर संघ के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया कि किस तरह फ्लैग कमेटी में पहले भगवा झंडे की संकल्पना पर सहमति हुई और बाद में बदल गया। और बाद में तिरंगे को अपनाया गया।
मोहन भागवत ने कहा कि जब मैं विचार कहता हूं तो मूल्यों की बात करता हूं। हमारे देश में जितने सारे विचार हैं, जो हमारे देश की भूमि से निकले हैं। देखेंगे प्रस्थान बिंदु और परिणति में कोई फर्क नहीं है। मूल में एक है। विद्वान लोग अलग अलग देखते हैं, इसलिए अलग अलग व्याख्या करते हैं। इसलिए विविधिताओं से डरना नहीं, विविधिताओं का उत्सव मनाओ।