आजमगढ़ में आसान नहीं होगी सपा मुखिया अखिलेश यादव की राह

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आजमगढ़, 03 अप्रैल(हि.स.)। आजमगढ़ लोकसभा सीट पर ग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा तो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के लिए गठबंधन के बावजूद उनकी राह आसान नहीं है। जातिय समीकरणों पर नजर डालें तो स्थिति काफी हद तक साफ भी हो जा रही है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने शायद इसी वजह से पूर्व बाहुबली सांसद रमाकांत यादव का टिकट काटकर भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ पर दांव लगाया है।
गठबंधन जहां यादव, मुस्लिम वोटरों पर अपना हक जता रहा है, वहीं भाजपा अन्य पिछड़े और सवर्णो पर। आजमगढ़ सीट पर यादव 19 प्रतिशत, दलित जिसमें केवल हरिजन 16 प्रतिशत और मुस्लिम 14 प्रतिशत हैं। इस हिसाब से गठबंधन 49 प्रतिशत वोटरों पर अपना दांवा कर रहा है। वहीं इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 1770635 है। अगर 49 प्रतिशत मतदाताओं को गठबंधन के साथ मान लिया जाय तो 867609 मतदाता गठबंधन के साथ होगें। शेष 903026 मतदाताओं पर भारतीय जनता पार्टी अपना हक जता रही है।
वर्ष 2014 और वर्ष 2017 में प्रदेश में हुए चुनावों में अतिदलित, अतिपिछड़ा पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में लामबंद रहा है। वही भाजपा के पूर्व सांसद रमाकांत यादव से यहां के सर्वण खाश तौर से नाराज रहते थे, लेकिन इस बार पार्टी ने निरहुआ को मैदान में लाकर उनकी भी नाराजगी को काफी हद तक दूर कर दिया है। जिसका असर भी इस चुनाव में देखने को मिल सकता है।
ऐसे में अगर भाजपा नेता आपसी गुटबाजी छोड़कर अगर पूरी ताकत के साथ निरहुआ के प्रचार में जुटते हैं तो निश्चित तौर पर आजमगढ़ का चुनाव वैसे ही दिलचस्प होगा जैसा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था।


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