अनाथ बच्चों की शिक्षक दंपति संवार रहे जिंदगी, बरौनी रेलवे स्टेशन पर लग रही पाठशाला
बेगूसराय, 03 जुलाई (हि.स.)। बरौनी रेलवे स्टेशन पर मुफलिसी की जिंदगी गुजार रहे सैकड़ों अनाथ, बेसहारा, आश्रयहीन एवं नशा के गिरफ्त में जकड़े बच्चों के ककहरा से प्रतिदिन प्लेटफॉर्म गुलजार हो रहा है। फरवरी 2013 से ही शोकहारा निवासी शिक्षक दंपति अजीत कुमार और शबनम मधुकर ने बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफॉर्म के खाली पड़े शेड (टीपीटी) में अनाथ, बेसहारा बच्चों का एक अनोखा विद्यालय शुरू किया। सामान्य स्कूलों की तरह ये बच्चे भी रोज स्कूल से पूर्व प्रार्थना, योगा एवं चेतना सत्र करते हैं। फिर होती है गीत, संगीत, पहेली, मुख अभिनय, चित्र, तालियां और चुटकियों जैसे रोचक गतिविधियों के द्वारा भाषा और गणित की पढ़ाई। यहां वे बच्चे ज्ञान की असीम शक्ति ले रहे हैं, जिनकी जिंदगी में शायद कभी शिक्षा व ज्ञान की रोशनी पहुंचने की उम्मीद भी नहीं थी।
प्लेटफॉर्म पर रहने वाले इन बेसहारा बच्चों की शिक्षा और बाल अधिकार को लेकर पहले तो दंपति ने कई स्थानीय विद्यालयों के अलावा संबंधित आलाधिकारियों, प्रधानमंत्री कार्यालय एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक दरवाजा खटखटाया, परंतु इन्हें सफलता नहीं मिली। लेकिन अजीत और शबनम ने हार नहीं मानी और स्वयं ही ऐसे बच्चों को शिक्षित और नशामुक्त कर समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का निश्चय किया और शुरू हो गया बेसहारा, बाल-श्रमिक बच्चों का एक अनोखा विद्यालय। देखते ही देखते कई बच्चे नशा और बाल अपराध की राह छोड़ पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न खेल-कूद, योगा और चित्रकला में प्रशिक्षित होने लगे। इन बच्चों ने स्थानीय एवं जिला स्तरीय विभिन्न प्रतियोगिताओं में सक्रिय सहभागिता निभाते हुए कई पदक और प्रशस्ति-पत्र प्राप्त कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अब इनके मासूम चेहरे पर बेबसी और मायूसी की जगह पढ़-लिख कर कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास स्पष्ट देखा जा सकता है। ये बच्चे तैयार हैं, हौसले की उड़ान भरने को और इन्हें आवश्यकता है बस सहयोग, थोड़ी सहानुभूति की।
अजीत का बचपन अपने पिता सीताराम पेाद्दार के साथ बरौनी रेलवे प्लेटफार्म पर चाय बेचते हुए गुजरा। अपने इरादे के मजबूत और धुन के पक्के अजीत शुरू से पढ़-लिख कर शिक्षक बनना चाहते थे। जीडी कॉलेज बेगूसराय से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर 2004 में उत्क्रमित मध्य विद्यालय रेलवे बरौनी में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। संघर्ष के दिनों में रेलवे प्लेटफॉर्म पर मुफलिसी की जिन्दगी गुजार रहे सैकड़ों अनाथ, बेसहारा, आश्रयहीन बाल श्रमिक बच्चों की जिन्दगी को काफी करीब से देखा एवं उनके दर्द को महसूस किया। देखा कि पढ़ने-लिखने व खेलने की उम्र में अशिक्षा, भूख, कुपोषण और नशे की गिरफ्त में पड़कर उम्र से पहले ही अपना जीवन और बचपन खो देते हैं। शैक्षणिक व नशामुक्ति अभियान न सिर्फ बरौनी जंक्शन के इन बच्चों के लिए है, बल्कि उन तमाम अनाथ, बेसहारा, आश्रयहीन बच्चों के लिए है जो अशिक्षा, भूख, कुपोषण एवं नशे की गिरफ्त में अपना जीवन और बचपन खो रहे हैं।